"कथानक": अवतरणों में अंतर
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इसके विपरीत कथानक (चाहे वह [[महाकाव्य]] की हो अथवा [[खंडकाव्य]], [[नाटक]], [[उपन्यास]] या [[लोकगाथा]] की हो) का वह तत्व है जो उसमें वर्णित कालक्रम से श्रृंखलित घटनाओं की धुरी बनकर उन्हें संगति देता है और कथा की समस्त घटनाएँ जिसके चारों और ताने बाने की तरह बुनी जाकर बढ़ती और विकसित होती हैं। कथा या कहानी भी साधारणत: कार्यव्यापार की योजना ही होती है, परंतु किसी एक भी कथा को कथानक नहीं कहा जा सकता; कारण, कथा की विशिष्टता केवल उसके कालानुक्रमिक वर्णन को अभिभूत कर लेती है। "नायक को नायिका से प्रेम हुआ और अंत में उसने उसका वरण कर लिया।'-कथा है। "नायक ने नायिका को देखा, वह उसपर अनुरक्त हो गया। प्राप्तिमार्ग के अनेक अवरोधों को अपने शौर्य और लगन से दूर करके, अंत में, उसने नायिका से विवाह कर लिया।'-कथानक है। अर्थात् कथा किसी भी कथात्मक साहित्यिक कृति का ढाँचा मात्र होती है जबकि कथानक में तत्प्रस्तुत प्रकरणवस्तु (थीम) के अनुरूप कथा का स्वरूप स्पष्ट, संगत एवं बुद्धिग्राह्य बनकर उभरता है।
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