"गुरु तेग़ बहादुर": अवतरणों में अंतर

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मुगल शासक [[औरंगजेब]] ने जब गुरू तेग बहादुर महाराज को इस्लाम कबूल करने को कहा तो इस पर गुरु साहब ने कहा '''सीस कटवा सकते है केश नहीं।'''
इस बात पर मुगल शासक तिलमिला उठा उसने सबके सामने दिल्ली के चांदनी चौंक में गुरू महाराज का सीस काटने का हुक्म जारी कर दिया।
गुरू तेग बहादुर महाराज का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें पहले काफी परेशान किया गया उनकी आंखों के सामने उनके प्यारे साथियों [[भाई मतिदास]] जी [[भाई सती दास]] जी तथा [[भाई दयाला]] जी को बेरहमी से शहीद किया गया जब वह गुरू जी को विचलित ना कर सके तो 11 नवंबर, 1675 ई को [[दिल्ली]] के [[चांदनी चौक]] में काज़ी ने [[फ़तवा]] पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार से गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया।
 
श्री गुरु तेग बहादुर जी की इस शहीदी से धरती-अंबर काँप उठे दुनिया का चप्पा-चप्पा शहादत के आगे नतमस्तक था उन्होंने समाज के भले के लिए अपने प्राणों को बलिदान दे दिया था।
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दिल्ली में यहां गुरू तेग बहादुर महाराज को इस्लाम ना कबूल करने की खातिर शहीद किया गया वहां आज [[गुरुद्वारा शीश गंज साहिब]] है। गुरू महाराज जी की शहादत के समय [[लक्खी शाह वनजारा]] वनजारा अपने पुत्रो तथा पांच सौ बैल गाड़ियों के साथ चांदनी चौंक से गुजर रहा था वह किसी तरह से श्री गुरु तेग बहादुर जी के धड़ को अपने साथ अपने घर रकाब-गंज गांव में लेलेकर आयाआने मुगलमें शाहीकामयाब फौजों ने चारों तरफ गुरु साहिब के सीस व धड़ को खोजने की कोशिश की परन्तु उनके हर प्रयत्न विफल रहेरहा उसने अपने मकान में ही गुरु जी की देह को श्रद्धा व सत्कारपूर्वक रखकर मकान को ही आग लगा दी जिस स्थान पर [[लक्खी शाह]] ने अपने मकान में गुरु साहिब का संस्कार किया था उसी स्थान पर दिल्ली में [[गुरुद्वारा रकाब- गंज साहिब]] सुशोभित है|
 
गुरू महाराज के सीस को शहादत के बाद [[भाई जैता जी]] मुगल फौजो की नजर से बचाते हुए दिल्ली से मीलो दूर [[आन्नद पूर साहिब]] में उनके बेटे [[गुरू गोबिंद सिंह]] जी तक पहुंचाने में कामयाब रहे तभी [[गुरू गोबिंद सिंह]] जी ने उन्हें सीने से लगाते हुए कहा '''रंगरेटा गुरू का बेटा'''
आन्नद पूर साहिब में यहां गुरू महाराज के सीस का संस्कार किया गया वहां आज [[गुरूद्वारा सीस गंज साहिब]] स्थित है।
हिन्दुस्तान की सरजमीन पर धर्म, मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब जी का स्थान सदैव अद्वितीय रहेगा।