"इन्दौर": अवतरणों में अंतर

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१६वीं सदी के [[दक्कन]] (दक्षिण) और [[दिल्ली]] के बीच एक व्यापारिक केंद्र के रूप में इन्दौर का अस्तित्व था। १७१५ में स्थानीय जमींदारों ने इन्दौर को नर्मदा नदी घाटी मार्ग पर व्यापार केन्द्र के रूप में बसाया था।
 
अठारहवीं सदी के मध्य में [[मल्हारराव होल्कर]] ने [[[पेशवा बाजीराव प्रथम]] की ओर से अनेक लड़ाइयाँ जीती थीं। [[मालवा]] पर पूर्ण नियंत्रण ग्रहण करने के पश्चात, १८ मई १७२४ को इंदौर [[मराठा साम्राज्य]] में सम्मिलित हो गया था। १७३३ में बाजीराव पेशवा ने इन्दौर को मल्हारराव होल्कर को पुरस्कार के रूप में दिया था। उसने [[मालवा]] के दक्षिण-पश्चिम भाग में अधिपत्य कर होल्कर राजवंश की नींव रखी और इन्दौर को अपनी राजधानी बनाया। उसकी मृत्यु के पश्चात दो अयोग्य शासक गद्दी पर बैठे, किन्तु तीसरी शासिका [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्या बाई]] (१७५६-१७९५ ई.) ने शासन कार्य बड़ी सफलता के साथ निष्पादित किया। जनवरी १८१८ में इन्दौर ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। यह ब्रिटिश मध्य भारत संस्था का मुख्यालय एवं मध्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी (१९५४-५६) था। इन्दौर में होल्कर नरेशों के प्रासाद उल्लेखनीय हैं।
 
[[ब्रिटिश राज]] के दिनों में, [[इन्दौर रियासत]] एक १९ गन सेल्यूट (स्थानीय स्तर पर २१) [[रियासत]] था, जो की उस समय एक दुर्लभ उच्च श्रेणी थी। अंग्रेजी काल के दौरान में भी यह होलकर राजवंश द्वारा शासित रहा। भारत के स्वतंत्र होने के कुछ समय बाद, यह भारत अधिराज्य में विलय कर दिया गया। इंदौर १९५० से १९५६ तक [[मध्य भारत]] की राजधानी के रूप में भी रहा।