"उल्लाला": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 37:
:भृगुनन्द सँभारु कुठार मैं, कियौ सराअन युक्त शरु।।</blockquote>उपरोक्त पदों को ध्यान से देखा जाय तो प्रत्येक विषम चरण के प्रारम्भ में एक 'गुरु' या दो 'लघु' हैं, जिनके बाद का शाब्दिक विन्यास तेरह मात्राओं की तरह ही है। उसी अनुरूप पाठ का प्रवाह भी है। इस कारण, विषम चरण में पहले दो मात्राओं के बाद स्वयं एक यति बन जाती है और आगे का पाठ दोहा के विषम चरण की तरह ही होता चला जाता है। उल्लाला छन्द का एक और नाम चंद्रमणि भी है।
 
== इन्हें भी देखें ==
*[[छंद]]
*[[छंदशास्त्र]]
*[[दोहा]]
*[[चौपाई]]
*[[सोरठा]]
*[[सवैया]]
== सन्दर्भ ==
{{Reflist|30em}}