"गुरु अर्जुन देव": अवतरणों में अंतर

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1597 में, गुरु जी ने [[लाहौर]] में अकाल के समय चूना मंडी के डब्बी बाजार में पानी के लिए एक बावली का निर्माण करवाया। लंगर, दवाइयों की व्यवस्था भी की जिससे वहां के लोगों की काफी मदद हुई।
 
'''दसवंद की प्रथा'''
 
गुरू जी ने ही संगतों को अपनी नेक कमाई में से दसवाँ हिस्सा शुभ व नेक कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित किया तांकि धर्म का पंचम बुलंद हो सके।
 
स्पष्ट है कि गुरु जी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे, जो दिन-रात संगत सेवा में लगे रहते थे। उनके मन में सभी धर्मो के प्रति अथाह स्नेह था। मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।