"भगवान": अवतरणों में अंतर
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'''भगवान''' पाली भाषा का शब्द है। इसलिये इस शब्द का अर्थ पाली शब्दावली में ही मिल सकता है अन्यथा दूसरे शब्दावली में इस भगवान शब्द का अर्थ ही कुछ अलग हो जाएगा।
उत्खनन से प्राप्त पाली अभिलेख में "भग रागों, भग दोसो, भग मोहो, इतपि सो भगवा" यानी जिसने अपने अंदर के राग को छोड़ दिया, विकार को छोड़ दिया, सांसारिक मोग को छोड़ दिया , वैसा व्यक्ति भगवान कहलायेगा।
"भगवान" भग और वान धातु से बना है। जिस भग का अर्थ त्याग, टूटना से होता है तो वही वान का अर्थ विकार होता है।
यानी जिसने भी अपने अंदर मौजूद सभी प्रकार के विकारों का त्याग कर दिया, वह भगवान कहा जायेगा।
लेकिन भाषा बदल जाने से इसका अर्थ भी लोग बदल दे रहे है।
जैसे:- आज की संस्कृत भाषा मे भगवान को "भग" धातु से बनाते हुए इस भग के ६ अर्थ है:-
१-ऐश्वर्य
२-वीर्य
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५-ज्ञान और
६-सौम्यता
जिसके पास ये ६ गुण है वह भगवान है।
== संज्ञा ==
पाली भाषा मेें भगवान को गुण से जोड़कर रखा गया है लेकिन संस्कृत में इसे संज्ञा बना दिया गया है। जिससे [[संज्ञा]] के रूप में '''भगवान्''' हिन्दी में लगभग हमेशा [[ईश्वर]] / [[परमेश्वर]] का पर्यायवाची मतलब रखता है। इस रूप में ये [[देवता]]ओं के लिये नहीं प्रयुक्त होता।
== विशेषण ==
[[विशेषण]] के रूप में '''भगवान्''' हिन्दी में बनेे शब्द [[ईश्वर]] / [[परमेश्वर]]
इस शब्द का गुण-स्वभाव भारत में हुए इन दो महापुरुष [[गौतम बुद्ध]] और [[महावीर]] के साथ ही सही और सटीक बैठता है।
इसी वजह से सिर्फ इन्ही दोनों को प्राप्त अभिलेख में भगवान बोला गया है।
==इन्हें भी देखें==
* [[जैन धर्म में भगवान|जैन और बौद्ध धर्म में भगवान]]
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