"मैत्रायणी उपनिषद्": अवतरणों में अंतर

सामवेद के स्थान पर कृष्ण यजुर्वेद
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'''मैत्रायणी उपनिषद्''' [[सामवेद|सामवेदीय]]यजुर्वेद की कृष्ण यजुर्वेद शाखा की एक संन्यासमार्गी उपनिषद् है। ऐक्ष्वाकु बृहद्रथ ने विरक्त हो अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर वन में घोर तपस्या करने के पश्चात् परम तेजस्वी शाकायन्य से आत्मान की जिज्ञासा की, जिसपर उन्होंने बतलाया कि ब्रह्मविद्या उन्हें भगवान मैत्रेय से मिली थी और ऊर्ध्वरेता बालखिल्यों को प्रदान कर प्रजापति ने इसे सर्वप्रथम प्रवर्तित किया।
[[चित्र:Atman.jpg|अंगूठाकार|मनुष्यात्मा]]
'''मैत्रायणी उपनिषद्''' [[सामवेद|सामवेदीय]] शाखा की एक संन्यासमार्गी उपनिषद् है। ऐक्ष्वाकु बृहद्रथ ने विरक्त हो अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर वन में घोर तपस्या करने के पश्चात् परम तेजस्वी शाकायन्य से आत्मान की जिज्ञासा की, जिसपर उन्होंने बतलाया कि ब्रह्मविद्या उन्हें भगवान मैत्रेय से मिली थी और ऊर्ध्वरेता बालखिल्यों को प्रदान कर प्रजापति ने इसे सर्वप्रथम प्रवर्तित किया।
 
== परिचय ==