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== कनिष्क एवं कश्मीर ==
 
 
हेन सांग के अनुसार कनिष्क गंधार का शासक था तथा उसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। उसके अनुसार कश्मीर कनिष्क के साम्राज्य (78-101 ई.) का अंग था। कनिष्क ने कश्मीर स्थित कुंडलवन में एक बौद्ध संगति का आयोज़न किया, जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी। इस संगति में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान सम्रदाय में विभाजित हो गया। <ref>ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864</ref>
 
कल्हण कृत राज तरंगिणी के अनुसार कनिष्क ने कश्मीर पर शासन किया तथा वह कनिष्क पुर नामक नगर बसाया था। अब यह स्थान [[बारामुला]] जिले में स्थित [['''कनिसपुर]]''' के नाम से जाना जाता हैं। <ref>के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968 </ref>
 
कुछ इतिहासकारों के अनुसार कश्मीर के साथ कनिष्क का गहरा सम्बन्ध था। कोशानो (कुषाण) साम्राज्य की बागडोर अपने हाथो में लेने से पहले कनिष्क [[कश्मीर]] में शासन करता था। <ref>डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911</ref>
 
कैम्पबेल के अनुसार दक्षिण राजस्थान में यह परंपरा हैं कि लोह्कोट के राजा कनकसेन (कनिष्क) ने उस क्षेत्र को जीता था। उसके अनुसार यह लोह्कोट कश्मीर में स्थित एक प्रसिद्ध किला था। लोह्कोट अब लोहरिन के नाम से जाना जाता हैं तथा कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पड़ता हैं। ए. एम. टी. जैक्सन ने ‘बॉम्बे गजेटियर’ में भीनमाल का इतिहास विस्तार से लिखा हैं| जिसमे उन्होंने भीनमाल में प्रचलित ऐसी अनेक लोक परम्पराओ और मिथको का वर्णन किया है जिनसे भीनमाल को आबाद करने में, कुषाण सम्राट कनिष्क की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता हैं| उसके अनुसार भीनमाल में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व में कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। ऐसी मान्यता हैं कि भीनमाल के देवड़ा गोत्र के लोग, श्रीमाली ब्राहमण तथा भीनमाल से जाकर गुजरात में बसे, ओसवाल बनिए राजा कनक (सम्राट कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से भीनमाल आए थे। एम. टी. जैक्सन श्रीमाली ब्राह्मण और ओसवाल बनियों की उत्पत्ति गुर्जरों से मानते हैं। <ref>ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896ए.</ref>केम्पबेल के अनुसार मारवाड के लौर गुर्जरों में मान्यता हैं कि वो राजा कनक (कनिष्क कुषाण) के साथ लोह्कोट से आये थे तथा लोह्कोट से आने के कारण लौर कहलाये।
अतः काल क्रम में कनिष्क को कश्मीर के शासक के रूप में जाना-पहचाना गया हैं तथा इस बात के प्रमाणिक संकेत मिलते हैं कि राजस्थान और गुजरात के गुर्जर तथा गुर्जर मूल के कुछ समुदाय कोशानो (कुषाण) सम्राट कनिष्क के साथ इन क्षेत्रो में बसे थे। <ref>जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899</ref>
 
सन्दर्भ
 
1. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
2. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968
3. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
4. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
5. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
6. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
 
==कनिष्क एवं बौद्ध धर्म ==