"कनिष्क": अवतरणों में अंतर

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सम्राट कनिष्क के सिक्के में सूर्यदेव बायीं और खड़े हैं। बांए हाथ में दण्ड है जो रश्ना सें बंधा है। कमर के चारों ओर तलवार लटकी है। सूर्य ईरानी राजसी वेशभूषा में एक लम्बे कोट पहने दाड़ी वाले दिखाये गए हैं, जिसके कन्धों से ज्वालाएं निकलती हैं। वह बड़े गोलाकार जूते पहनते है। उसे प्रायः वेदी पर आहूति या बलि देते हुए दिखाया जाता है। इसी विवरण से मिलती हुई कनिष्क की एक मूर्ति काबुल संग्रहालय में संरक्षित थी, किन्तु कालांतर में उसे तालिबान ने नष्ट कर दिया।<ref>वुड (२००२), illus. p. 39.</ref>
 
==भारतीय राष्ट्रीय संवत - शक संवत==
===यूनानी काल ===
शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं| इस संवत को कुषाण/कसाना सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में 78 इस्वी में चलाया था| इस संवत कि पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा होती हैं जोकि भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान के राज्य रोहण की वर्ष गाठ हैं| शक संवत में कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो भारत में प्रचलित किसी भी अन्य संवत में नहीं हैं जिनके कारण भारत सरकार ने इसे “भारतीय राष्ट्रीय संवत” का दर्ज़ा प्रदान किया हैं। <ref>U P  Arora , Ancient India: Nurturants of Composite culture,  Papers from The Aligarh Historians Society , Editor Irfan Habib, Indian History Congress, 66th sessions , 2006</ref>
कनिष्क के काल के आरम्भ के कुछ सिक्कों पर यूनानी भाषा एवं लिपि में लिखा है : ΒΑΣΙΛΕΥΣ ΒΑΣΙΛΕΩΝ ΚΑΝΗ''Ϸ''ΚΟΥ, ''बैसेलियस बॅसेलियॉन कनेश्कोऊ'' "कनिष्क के सिक्के, राजाओं का राजा" <br/>
 
इन आरम्भिक मुद्राओं में यूनानी नाम लिखे जाते थे:
 
* ΗΛΙΟΣ (''ēlios'', [[:w:Helios|हेलिओज़]]), ΗΦΑΗΣΤΟΣ (''ēphaēstos'', [[:w:Hephaistos|हेफास्टोज़]]), ΣΑΛΗΝΗ (''salēnē'', [[:w:Selene|सॅलीन]]), ΑΝΗΜΟΣ (''anēmos'', [[:w:Anemos|ऍनिमोस]])
भारत भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता वाला विशाल देश हैं, जिस कारण आज़ादी के समय यहाँ अलग-अलग प्रान्तों में विभिन्न  संवत चल रहे थे| भारत सरकार के सामने यह समस्या थी कि किस संवत को  भारत का अधिकारिक संवत का दर्जा दिया जाए| वस्तुत भारत सरकार ने सन 1954 में संवत सुधार समिति(Calendar Reform Committee) का गठन किया जिसने देश प्रचलित 55 संवतो की पहचान की| कई बैठकों में हुई बहुत विस्तृत चर्चा के बाद संवत सुधार समिति ने स्वदेशी संवतो में से शक संवत को अधिकारिक राष्ट्रीय संवत का दर्जा प्रदान करने कि अनुशंषा की, क्योकि  प्राचीन काल में यह संवत भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था| शक संवत भारतीय संवतो में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं, शक संवत प्रत्येक साल 22 मार्च को शुरू होता हैं, इस दिन सूर्य विश्वत रेखा पर होता हैं तथा दिन और रात बराबर होते हैं| शक संवत में साल 365 दिन होते हैं और इसका ‘लीप इयर’ ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथ ही पड़ता हैं| ‘लीप इयर’ में यह 23 मार्च को शुरू होता हैं और इसमें ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ की तरह 366 दिन होते हैं। <ref>A L Basham, The wonder that was India, Calcutta, 1991</ref>
 
 
पश्चिमी ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के साथ-साथ, शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं| शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता हैं| भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओ और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं। <ref>Shri Martand Panchangam, Ruchika Publication, Khari Bawli, Delhi, 2012</ref>
 
जहाँ तक शक संवत के ऐतिहासिक महत्त्व कि बात हैं, इसे भारत के विश्व विख्यात सम्राट कनिष्क महान ने अपने राज्य रोहण के उपलक्ष्य में चलाया था| कनिष्क एक बहुत विशाल साम्राज्य का स्वामी था| उसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला हुआ था| उसके साम्राज्य में वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान के हिस्सा, तजाकिस्तान का हिस्सा और चीन के यारकंद, काशगर और खोतान के इलाके थे| कनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये था| वह इस साम्राज्य पर चार राजधानियो से शासन करता था| पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा, तक्षशिला और बेग्राम उसकी अन्य राजधानिया थी| कनिष्क इतना शक्तिशाली था कि उसने चीन के सामने चीनी राजकुमारी का विवाह अपने साथ करने का प्रस्ताव रखा, चीनी सम्राट द्वारा इस विवाह प्रस्ताव को ठुकराने पर कनिष्क ने चीन पर चढाई कर दी और यारकंद, काशगार और खोतान को जीत लिया <ref>Rama Shankar Tripathi, History of Ancient India, Delhi, 1987</ref>
 
कनिष्क के राज्य काल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई क्योकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था उस पर कनिष्क का कब्ज़ा था| भारत के बढते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआ| इस समय पश्चिमिओत्तर भारत में करीब 60 नए नगर बसे और पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए।
<ref>D N Jha & K M Shrimali, Prachin Bharat ka  Itihas, Delhi University, 1991</ref>
 
कुषाण समुदाय एवं उनका नेता कनिष्क मिहिर (सूर्य) और अतर (अग्नि) के उपासक थे| उसके विशाल साम्राज्य में विभिन्न धर्मो और रास्ट्रीयताओं के लोग रहते थे| किन्तु कनिष्क धार्मिक दृष्टीकोण से बेहद उदार था, उसके सिक्को पर हमें भारतीय, ईरानी-जुर्थुस्त और ग्रीको-रोमन देवी देवताओं के चित्र मिलते हैं| बाद के दिनों में कनिष्क बोद्ध मत के प्रभाव में आ गया| उसने कश्मीर में चौथी बोद्ध संगति का आयोज़न किया, जिसके फलस्वरूप बोद्ध मत कि महायान शाखा का उदय हुआ| कनिष्क के प्रयासों और प्रोत्साहन से बोद्ध मत मध्य एशिया और चीन में फ़ैल गया, जहाँ से इसका विस्तार जापान और कोरिया आदि देशो में हुआ| इस प्रकार गौतम बुद्ध, जिन्हें भगवान विष्णु का नवा अवतार माना जाता हैं, उनके मत का प्रभाव पूरे एशिया में व्याप्त हो गया और भारत के जगद गुरु होने का उद् घोष विश्व की हवाओ में गूजने लगा। <ref>Prameshwari lal Gupta, Prachin Bhartiya Mudrae,Varanasi, 1995.
Lalit Bhusan, Bharat Ka Rastriya Sanvat- Saka Sanvat,Navbharat Times, 11 April 2005</ref>
 
कनिष्क के दरबार में अश्वघोष, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे विद्वान थे| आयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थे| कनिष्क के राज्यकाल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआ| भारत में पहली बार बोद्ध साहित्य की रचना भी संस्कृत में हुई| गांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान के शासनकाल की ही देन हैं।
 
मौर्य एवं मुग़ल साम्राज्य की तरह कुषाण वंश ने लगभग दो शताब्दियों (५०-२५० इस्वी) तक उनके जितने ही बड़े साम्राज्य पर शान से शासन किया| कनिष्क का शासनकाल इसका चर्मोत्कर्ष था| कनिष्क भारतीय जनमानस के दिलो दिमाग में इस कदर बस गया की वह एक मिथक बन गया| तह्कीके - हिंद का लेखक अलबरूनी १००० इस्वी के लगभग भारत आया तो उसने देखा की भारत में यह मिथक प्रचलित था कि कनिष्क की ६० पीढियों ने काबुल पर राज किया हैं| कल्हण ने बारहवी शताब्दी में कश्मीर का इतिहास लिखा तो वह भी कनिष्क और उसके बेटे हुविष्क कि उपलब्धियों को बयां करता दिखलाई पड़ता हैं| कनिष्क के नाम की प्रतिष्ठा हजारो वर्ष तक कायम रही, यहाँ तक कि भारत के अनेक राजवंशो की वंशावली कुषाण काल तक ही जाती हैं
<ref>Lalit Bhusan, Bharat Ka Rastriya Sanvat- Saka Sanvat,Navbharat Times, 11 April 2005</ref>
 
शक संवत का भारत में सबसे व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट के प्रति प्रेम और आदर का सूचक हैं, और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं| प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (५०० इस्वी) और इतिहासकार कल्हण (१२०० इस्वी) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे| उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे| दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यो में शक संवत का प्रयोग करते थे <ref>The Hindu Calendar System -http://hinduism.about.com/od/history/a/calendar.htm,</ref>
 
 
मध्य एशिया कि तरफ से आने वाले कबीलो को भारतीय सामान्य तौर पर शक कहते थे, क्योकि कुषाण भी मध्य एशिया से आये थे इसलिए उन्हें भी शक समझा गया और कनिष्क कुषाण/कसाना द्वारा चलाया गया संवत शक संवत कहलाया| इतिहासकार फुर्गुसन के अनुसार अपने कुषाण अधिपतियो के पतन के बाद भी उज्जैन के शको द्वारा कनिष्क के संवत के लंबे प्रयोग के कारण इसका नाम शक संवत पड़ा|शक संवत की लोकप्रियता का एक कारण इसका उज्जैन के साथ जुड़ाव भी था, क्योकि यह नक्षत्र विज्ञानं और ज्योतिष का भारत में सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र था।
{{Reflist}}
*''Report of the Calendar Reform Committee'' (New Delhi: Council of Scientific and Industrial Research, 1955) – [http://dspace.gipe.ac.in/xmlui/handle/10973/39692 online link].
*''Mapping Time: The Calendar and its History'' by E.G. Richards ({{ISBN|978-0-19-286205-1}}), 1998, pp.&nbsp;184–185.
 
मालवा और गुजरात के जैन जब दक्षिण के तरफ फैले तो वो शक संवत को अपने साथ ले गए, जहाँ यह आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं| दक्षिण भारत से यह दक्षिण पूर्वी एशिया के कम्बोडिया और जावा तक प्रचलित हो गया| जावा के राजदरबार में तो इसका प्रयोग १६३३ इस्वी तक होता था, जब वहा पहली बार इस्लामिक कैलेंडर को अपनाया गया| यहाँ तक कि फिलीपींस से प्राप्त प्राचीन ताम्रपत्रों में भी शक संवत का प्रयोग किया गया हैं <ref>Kanishka; the Saka Era, art and literature-http://articles.hosuronline.com/articleD.asp?pID=958&PCat=8</ref>
 
===शक संवत एवं विक्रमी संवत===
 
शक संवत और विक्रमी संवत में महीनो के नाम और क्रम एक ही हैं- चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आसाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, पौष, अघन्य, माघ, फाल्गुन| दोनों ही संवतो में दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष| दोनों संवतो में एक अंतर यह हैं कि जहाँ विक्रमी संवत में महीना पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष से शुरू होता हैं, वंही शक संवत में महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होते हैं| उत्तर भारत में दोनों ही संवत चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आरम्भ होते हैं, जोकि शक संवत के चैत्र माह की पहली तारीख होती हैं, किन्तु यह विक्रमी संवत के चैत्र की १६ वी तारीख होती हैं, क्योकि विक्रमी संवत के चैत्र माह के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन बीत चुके होते हैं| गुजरात में तो विक्रमी संवत कार्तिक की अमावस्या के अगले दिन से शुरू होता हैं
*{{cite book|ref=harv |author=Kim Plofker|title=Mathematics in India |url=https://books.google.com/books?id=DHvThPNp9yMC |year=2009 |publisher=Princeton University Press |isbn=0-691-12067-6 }}
*{{cite journal | last=Pingree | first=David | title=The Mesopotamian Origin of Early Indian Mathematical Astronomy | journal=Journal for the History of Astronomy | publisher=SAGE | volume=4 | issue=1 | year=1973 | doi=10.1177/002182867300400102 | ref= harv| bibcode=1973JHA.....4....1P }}
*{{cite book|last=Pingree |first= David | title= Jyotihśāstra : Astral and Mathematical Literature| publisher= Otto Harrassowitz| year= 1981| isbn= 978-3447021654 }}
*{{cite book|ref=harv|author=Yukio Ohashi|editor=Johannes Andersen|title=Highlights of Astronomy, Volume 11B|url=https://books.google.com/books?id=gQYscrT0fgQC|year=1999|publisher=Springer Science|isbn=978-0-7923-5556-4}}
*{{cite journal|ref=harv|author=Yukio Ohashi| title=Development of Astronomical Observations in Vedic and post-Vedic India| year=1993|journal=Indian Journal of History of Science|volume=28|number=3}}
*{{cite book| author=Maurice Winternitz| authorlink=Moriz Winternitz| title=History of Indian Literature, Volume 1| year=1963| publisher=Motilal Banarsidass| isbn=978-81-208-0056-4}}
 
===ईरानियाई/ इण्डिक काल ===