"उल्लाला": अवतरणों में अंतर

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उदाहरण
 
'''सम चरण तुकान्तता'''-<blockquote>प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारत नेकु मन।
सपनेहुँ न विलम्बियै, छिन तिग हिग आनन्द घन।।</blockquote>'''विषम-सम चरण तुकान्तता'''-<blockquote>उर्ध्व ब्रह्म के गर्भ में, संभव के संदर्भ में।
वृत्ति चराचर व्यापती, काल-क्षितिज तक मापती।।</blockquote>दूसरे प्रकार के उल्लाला छन्द का उदाहरण, जिसके पद 15-13 की यति पर होती है। यानि विषम चरण में 15 मात्राएँ तथा सम चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार के उल्लाला में तुकान्तता सम चरणों पर ही स्वीकार्य है-<blockquote>
:कै शोणित कलित कपाल यह, किल कपालिका काल को।
:यह ललित लाल केधौं लसत, दिग्भामिनि के भाल को।।
:अति अमल ज्योति नारायणी, कहि केशव बुड़ि जाहि बरु।
:भृगुनन्द सँभारु कुठार मैं, कियौ सराअन युक्त शरु।।</blockquote>उपरोक्त पदों को ध्यान से देखा जाय तो प्रत्येक विषम चरण के प्रारम्भ में एक 'गुरु' या दो 'लघु' हैं, जिनके बाद का शाब्दिक विन्यास तेरह मात्राओं की तरह ही है। उसी अनुरूप पाठ का प्रवाह भी है। इस कारण, विषम चरण में पहले दो मात्राओं के बाद स्वयं एक यति बन जाती है और आगे का पाठ दोहा के विषम चरण की तरह ही होता चला जाता है। उल्लाला छन्द का एक और नाम '''''चंद्रमणि''''' भी है।
 
== इन्हें भी देखें ==