"हिन्दुत्व": अवतरणों में अंतर

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(७) '''सच्चा जीवन''' : अवैधानिक धन का अर्जन न करना, अनैतिक एवं अवैधानिक इच्छाओं की पूर्ति में संलग्न न होना तथा एक सच्चा जीवन बिताना हिन्दू जीवन पद्धति का ही एक अन्य पक्ष है। यह सच्चाई सिद्धांत है केवल नीति मात्र नहीं।
 
(८)''' संयम या इन्द्रिय निग्रह''' : एक मनुष्य को 'आत्म संयम' के गुण का विकास करना चाहिए क्योंकि यही केवल उसके मन को नियंत्रित कर सकता है।मन ही म मनुष्य के सभी अच्छे बुरे कर्मों का स्रोत होय है । व्यक्ति बौद्धिक एवं वित्तीय संसाधनों को इस रूप से नियमित करने हेतु कि इनका उपयोग सदैव अच्छे कार्यों के लिये हो संयम का गुण अति आवश्यक है।
 
(९)''' त्रिकोण शुद्धि''' : व्यक्ति के विचार, वाणी तथा कर्म के बीच सामंजस्य होना चाहिये। इसका अभिप्राय है कि व्यक्ति को वही बोलना चाहिये, जो वह अपने मन में सोचना है और तदनुरूप ही कार्य करना चाहिये। यही शरीर, मन एवं आत्मा की सच्चाई है।
 
(१०) '''पारिवारिक जीवन''': एक पुरुष एवं स्त्री के मध्य विवाह के माध्यम से निर्मित पति-पत्नी के संबंधों की पवित्रता, जिससे परिवार अस्तित्व में आता है तथा इसके बीच संबंधों का अटूट होना ही हिन्दू जीवन पद्धति में प्रतिपादकों द्वारा प्रदत्त सुदृढ़ आधार है। उस पर ही सामाजिक जीवन संरचित है। अत: पारिवारिक जीवन की सर्वोच्च महत्व दिया गया है। यह कहा जाता है कि 'जो अच्छा पारिवारिक जीवन बिता रहे हैं उन पर दैवी कृपा है।' इसी काल में व्यक्ति को अर्थोंपार्जन के एवं परिवारयापन, सभी अर्जन न करने वाले परिवारिक सदस्यों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना, साथ ही समाज की भी किसी व्यवसाय अथवा व्यापार अथवा कार्य द्वारा सेवा करना तथा बच्चे पैदा करना, उन्हें बड़ा करना एवं अच्छे नागरिक के रूप में उन्हें ढालना – जैसे उत्तरदायित्वों का वहन निर्विघ्न करना पड़ता है। परिवार के अन्य उत्तरदायित्व—अतिथि सत्कार, जरूरतमंदों की सहायता तथा सर्वजन हिताय कर्म भी रहे हैं।
(११) '''माता की संकल्पना''' : माँ (माता) को ईश्वर के समान, सर्वोच्च पद इसलिये दिया जाता रहा है, क्योंकि वह व्यक्ति को जन्म देती है, उसका पालन-पोषण करती है, अपने बच्चों के कल्याण एवं भलाई के लिये, अपनी माता से बढ़कर दूसरा कोई प्यारा नहीं है। सभी स्त्रियों को माता के समकक्ष ही स्थान दिया गया है।
माता के प्रति कृतज्ञता की भावना का विस्तार पृथ्वी तक समाहित है। जो कि हमें वह सब कुछ प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता है अत: उसकी पूजा ' भू-माता' के रूप में की जाती है। इसी प्रकार की भावना मातृभूमि (मदरलैण्ड) शब्द से प्रस्फुटित होती है। इस कारण हिन्दू जीवन पद्धति में किसी का अपना देश केवल धन या संपति का द्योतक नहीं होता है, वरन् इसे इसे माता के स्थान पर रख गया है । इसलिए भारतीय भारत को भारत माता मानते है ।
केवल एक जयघोष 'भारत माता की जय' या 'वन्दे मातरम्' इस भूमि के सभी जनों को उनकी भाषा, धर्म, जाति, क्षेत्र इत्यादि के विभेद के होते हुये भी इसी कारण प्रेरित करता है और एकता सूत्र में जोड़ता है।