"सत्य": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
निरंजन लाटिया (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 4139219 को पूर्ववत किया
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
पंक्ति 1:
{{जैन धर्म}}
'''सत्य''' (truth) के अलग-अलग सन्दर्भों में एवं अलग-अलग सिद्धान्तों में सर्वथा भिन्न-भिन्न अर्थ हैं।
 
जब किसी भी मनुष्य को तीव्र इच्छा होती है विश्व का परम् सत्य को जाने के लिए वहां अत्याधिक चितंन मनन व कल्पना करता है कि विश्व की संरचना कैसी है विश्व की उत्पत्ति व अंत क्या है विश्व की प्रकृति व मानव समाज का संचालन का नियम क्या है और परमात्मा आत्मा जीवात्मा वास्तव में है या नहीं।
 
इन सबको जाने के लिऐ सबसे पहले वहां व्यक्ति विज्ञान के सिध्दांतों को पढ़ता देखता और सुनता है जिसके अनुसार विश्व की उत्पत्ति आज से 13.8 अरब पहले हुई है जिसका आकंलन वैज्ञानिक अंतरिक्ष के एक तारे की सबसे पूराने प्रकाश को माप के करे है इस सिध्दान्त के अनुसार कुछ नहीं था अर्थात शून्य था फिर एक वहां एक बिन्दु पर महाविस्फोट हुआ जिसे कई कण बने अंतरिक्ष असंख्य किलोमीटर के रूप में असित्व में आया वहां उन कणों के मध्य रसायनिक क्रिया होकर तारे बने उन तारों में विस्फोट हुआ उसके तत्व से ग्रह उपग्रह बने जो किसी अन्य तारे के चारों ओर घूम रहे है वही सूर्य है ये सब घटना आठ अरब वर्षों में हुआ फिर चार अरब वर्ष पहले हमारा पृथ्वी बना यहां जीवन समुद्र में एक रसायन के रूप में उत्पन्न हुआ फिर वनस्पति व जीव जन्तु अस्तित्व में आए तथा छैः करोड़ वर्ष पहले उल्का पिण्ड से वे जीव जन्तु वनस्पति की आधे से ज्यादा प्रजाति खत्म हो गई मनुष्य की उत्पत्ति आज से दो लाख वर्ष पहले अफ्रीका के जंगलों में बंदरों के विकास क्रम से हुई और सभ्य मनुष्य पांच हजार वर्षों से है जो आज तक आधुनिकीकरण कर रहा है । इस विश्व का अंत बिंग क्रांच बिंग रिलिफ ब्लैक होल से होगा ये सिध्दान्त एक परिकल्पना है ।
विज्ञान के एक और सिध्दान्त के अनुसार यहां विश्व कभी नहीं बनना है और कभी खत्म नहीं होगा । यही सिध्दान्त सत्य है ।
विज्ञान के अनुसार विश्व का आकार अरबों प्रकाश वर्ष है जिसके बंद अनंत शून्य है कहा जाऐ तो ब्राम्ह्मण है फिर आकाशगंगा है उसमें तारे है वे तारे के कारण सौर मण्डल में ग्रह उपग्रह है उसी में एक ग्रह पृथ्वी है ।
विज्ञान के सिध्दान्त के अनुसार विश्व का संचालन स्वतः ही हो रहा ब्राम्ह्मण में आकाशगंगा एक दूसरे के चक्कर लगा रहे है आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर तारे लगा रहे है तारों का चक्कर ग्रह लगा रहे है और ग्रहों का चक्कर उपग्रह लगा रहे हैं।
विज्ञान के कुछ सिध्दान्त अनुसार विश्व का निर्माण व अंत बार बार होता है ।
 
परन्तु प्रचीन धर्मो के अनुसार विश्व का निर्माण अंत के कई कहानियां है===
जैसे हिन्दू धर्म शिव ब्राम्हा विष्णु व जगदम्बा से यहां विश्व बनना है और इन सब की अलग अलग कहानी है फिर इसका अंत इनके कारण ही होगा परन्तु ये ब्राम्ह्मण का बार बार निर्माण करते है इसके अनुसार ब्राम्ह्मण में तीन लोक है उन लोकों में चौदह भुवन है विश्व का संचालन इनकी शक्ति से हो रहा है और ये ही जीवन के कारण है मनुष्य इनका ही अंश है जो बार बार जन्म मरण चक्र में है ।
ऐसी ही मान्यता इसे उत्पन्न धर्म जैन सिख की भी है परन्तु इनमें परमात्मा का स्वरूप भिन्न है इनमें वाहे गुरू ये तीर्थंकर परमात्मा है ।
बौध्द झेन धर्मो में परमात्मा के अस्तित्व को नकार दिया गया है इस ब्राम्ह्मण के बारे में कहा गया है यहां सदैव था है और रहेगा ।
फिर शिन्तो ताओ कन्यफूजियस में प्रकृति व सूर्य को ही परमात्मा कहा गया है जो सृष्टि का निर्माण किये है ।
पश्चिमी धर्मो में विश्व की उत्पत्ति अंत आकार की एक ही कथा है परन्तु उन धर्मो के परमात्मा भिन्न है इस्लाम के लिए आल्लाहा इसाई के लिए गाॅड फादर यहूदी के लिए यहूवा और इनके रीति रिवाज पहनावा रहन सहन खानपान पूजाविधि विवाह विधि आदि संस्कार में अंतर है पारसी धर्म की भी अपनी कथा है लोक धर्म आदिवासी संस्कृति की भी भिन्न कथाऐ है । प्रायः स्वर्ग व नरक की अवधारणा सभी धर्मों में है ।
 
विश्व के प्रायः सभी लोग अपने धर्मों के सिध्दान्त के अनुसार ही विश्व की उत्पत्ति अंत आकार संचालन का नियम जानते है कुछ लोग सभी धर्मों के सिध्दान्त को जानते है परन्तु उन्हें असत्य मानकर स्वयं धर्म या विज्ञान के सिध्दान्त को सत्य मनाते है ।
 
परन्तु चेतना जागृत होने पर इन सभी सिध्दांतों में सत्य को जाने की तीव्र इच्छा के कारण विश्व का परम् सत्य का बौध्द होता है ।
जैसे विश्व की उत्पत्ति ना कभी हुई है ना इसका अंत होगा ।
विश्व मात्र पृथ्वी ही है सभी तारे ग्रह नक्षत्र सूर्य चन्द्र पृथ्वी के चारों ओर घुमाते है अंतरिक्ष भ्रम है वहां कही जीवन नहीं है ना वहां अनंत है खुले आंखों से जितना दिखता है उतना ही सत्य है उसके बाद अंतरिक्ष शून्य है कुछ नहीं है वहां ना स्वर्ग है ना नरक ।
विश्व का संचालन स्वतः ही हो रहा है प्रकृति के नियम अनुसार सूर्य चन्द्र ग्रह नक्षत्र स्वतः ही गति कर रहे है पृथ्वी में वनस्पति व जीव जन्तु प्रकृति के नियम से जन्म मृत्यु लेते व जीते है ।
 
मानव समाज के संचालन के लिए ही प्रकृति से स्वतः ही कई धर्म संस्कृति है जो उनके चेतना अर्थात मस्तिष्क के केन्द्र में है सभी के चेतना में परमात्मा का भिन्न भिन्न स्वरूप है जिसमें यहूदी के लिए यहूवा हिन्दू के लिए शिव मुस्लिम के लिए अल्लाह इसी प्रकार अन्यों के लिए भी परमात्मा का स्वरूप उनके कल्पना के अनुसार है तो सभी धर्मों के कथा विज्ञान के सिध्दान्त और उनके प्रमाणित स्थल कथा अवशेष क्या है वे लोगों की परिकल्पना है अर्थात कहा जाऐ तो वहां कथा मनुष्य को विश्व का सत्य ज्ञात होता है तो उसको पढ़ने देखने सुनने से ऐसा लगाता है की यहाँ मेरी कहनी है कहा जाऐ तो उसकी आत्मा की कहनी है वहां ये कथाओ तीन वर्षों के परिकल्पना के बाद अन्यों के कथा भी परिकल्पना है ज्ञात हो जाता है तो ये इन सब कहानियों के स्थल अवशेष कैसे है तो ज्ञात होता है ये पृथ्वी में एक खरब वर्षों का समय चक्र है जिसमें चार युग है जो पांच सौ पांच सौ वर्षों के है जिसे के कारण मनुष्य लोग लौह युग ताम्र युग रजत युग स्वर्ण युग में है उन्हें इसका ज्ञान ही नहीं है ना इसका प्रमाण है इन युगों के कारण शिक्षा आधुनिकीकरण उच्च से निम्न होते रहते है जिसके कारण उन्हें वास्तविक युग के बारे में जानकारी ही नहीं रहती और वास्तविक युग के घटना इतिहास इमारत लोगों का कभी अस्तित्व ही नहीं रहता प्रकृति व मानवीय हस्तक्षेप के कारण और सदैव विश्व में परिकल्पना की दुनिया कहा जाऐ तो प्रचीन धर्म सभ्यता व साम्राज्य के कथा इमारत व अवशेष रहते है ।
मनुष्य का संचालन उसके भीतर की आत्मा के मन व चेतना के भिन्न भिन्न होने के कारण होता है जिसमें पंचमहाभूत क्रिया प्रतिक्रिया करते है और सभी मनुष्य एक अरब जन्म लेते है और बार बार यही समय वापस आता रहता है ।
 
= सत्य का महत्व =
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सत्य" से प्राप्त