"सत्य": अवतरणों में अंतर

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विश्व के परम् सत्य से अधिकांश मनुष्यों का मन दूरी बनाकर रखता है क्योंकि उनका मन उन्हें संसारिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है ।
विश्व के अधिकांश मनुष्य स्वयं के धर्म के परिकल्पनिक इतिहास भविष्य सृष्टि का सृजन व लय को ही सत्य मानकर गंभीरतापूर्वक जीवनयापन करते है या फिर कुछ विज्ञान के सिध्दान्त के अनुसार सम्पूर्ण सृष्टि ब्राम्ह्मण की रचना व अंत को स्वीकार कर अपना जीवनयापन करते है ।
अधिकांश मनुष्यों को सृष्टि का परम् सत्य ना जाने की इच्छा होती है ना ही सुने पढ़ने की इच्छा होती है क्योंकि विधि के विधान अनुसार उन्हें संसारिक जीवन जीना है जब कभी उन्हें सृष्टि का सत्य ज्ञात हुआ होगा या होगा तो आज जिन्हें सृष्टि का परम् सत्य जान लिये है या जाने की इच्छा होगी वे उनसे दूरी बना लेंगे या फिर उनकी शब्दों ज्ञान को अनदेखा अनसुना कर देगा विश्व का प्रकृति नियम के अनुसार एक साथ विश्व का परम् सत्य सभी को ज्ञात नही हो सकता है मात्र विश्व की अबादी में हजारों लोग को ही परम् सत्य ज्ञात रहता है ।
 
संसारिक मनुष्य स्वयं के धर्म को सत्य मानकर अपने सामान्य पवित्र व दुष्ट प्रवृत्ति के अनुसार संसार में कर्म कर जीवन जीता है ।
संसारिक मनुष्य का जीवन अत्याधिक व्यस्त होता है वे अपने कर्तव्य जिसमे परिवार समाज के लोगो के प्रति अपने जिम्मेदारी निभाता है फिर उत्तरदायित्व जिसमें समाज के रोजगार व्यवसाय से समाज की जरूरत पूरी करके अपने लिए धन दौलत एकत्रित करता है जिसे वहां अपने कर्तव्य व उद्देश्य की पूर्ति कर सके और अंत में उद्देश्य इसे इच्छा या लक्ष्य कहा जा सकता है कुछ मनोरंजन के आदतों से ग्रसित होते है घुमाना खाना पीना प्रेम प्रसंग फिल्म संगीत देखना सुना सौन्दर्य सामग्री का इस्तेमाल ही करते है कुछ धर्म संस्कृति सामाज देश दुनिया के विकास सुरक्षा को ही महत्व देते है कुछ को प्रसिध्द होना है कुछ को अत्याधिक धनी बना है कुछ को अधिकारी नेता कलाकार खिलाड़ी बना है कुछ को रोजगार व्यवसाय करना है कुछ को शादी करना है बच्चों का भविष्य बनना है कुछ को स्वाथ्य रहना है कुछ गृह कलेश से परेशान है जिसे शांत करना चाहते है कुछ खुद के मन के विचार कल्पना प्रेम करने की इच्छा से परेशान है जिसे वे शांत करना चाहते है ।
हम सब मनुष्य के भीतर अंतर्मन है जो एक दूसरे की भावनाओं इच्छाओं व कर्मो को समझता है इसलिए जिसके साथ जैसा व्यवहार करना है कैसा सम्बन्ध रखना है यहां अच्छी तरहा से जानकर प्रतिक्रिया करता है मानवीय समाज में।
 
मनुष्य अपने उद्देश्य जिसमें इच्छा व लक्ष्य होते है वे उसकी पूर्ति के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करता है परन्तु सभी मनुष्य अपने कर्तव्य व उत्तरदायित्व का निर्वाह अनिर्वाय रूप से करते है बहुत ही कम लोग अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कर्तव्य या उत्तरदायित्व या दोनो को व्यर्थ मानकर उस नही निभाते है कुछ लोग अपने कर्तव्य व उत्तरदायित्व को निभाने के लिए अपने इच्छा व लक्ष्य को त्याग देते है मन से पर अधिकांश मनुष्य कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य कहा जाए तीनों के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करते है जीवनभर ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/सत्य" से प्राप्त