"ध्यान (योग)": अवतरणों में अंतर

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'''ध्यान''' [[हिन्दू धर्म]], भारत की प्राचीन शैली और विद्या के सन्दर्भ में [[पतंजलि|महर्षि पतंजलि]] द्वारा विरचित [[योगसूत्र]] में वर्णित अष्टांगयोग का एक अंग है<ref>[http://www.vivekananda.net/PDFBooks/Yoga_Sastra.pdf&sa=U&ved=0ahUKEwiXpJPS0OXMAhWBLI8KHdzTCkQQFggdMAY&usg=AFQjCNHBtzV10TrhaDYkL7tbkeklSNsHzQ पतंजलि योग सूत्र] प्राप्त:- १९ मई २०१६</ref>। ये आठ अंग [[यम]], [[नियम]], [[आसन]], [[प्राणायाम]], [[प्रत्याहार]], [[धारणा]], ध्यान तथा [[समाधि]] है। ध्यान का अर्थ किसी भी एक विषय की धारण करके उसमें मन को एकाग्र करना होता है। मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना जैसे कई उद्दयेशों के साथ ध्यान किया जाता है। ध्यान का प्रयोग [[भारत]] में प्राचीनकाल से किया जाता है।
वर्तमान जीवन के कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति में ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जिसे व्याकुलता व चिंताओं का अंत हो जाता है।
 
सभी मनुष्य विश्व में स्वयं के कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करते व्यस्त रहते है यही प्रकृति का नियम निर्धारित है ।
 
सभी मनुष्यों के लिए विश्व की उत्पत्ति अंत इतिहास भविष्य आकार व परमात्मा का स्वरूप उनके धर्म अनुसार ही सत्य है क्योंकि उनकी चेतना अपने धर्म को ही स्वीकार करती है फिर भी वास्तविक सत्य यही है की पृथ्वी के बाहर जो अंतरिक्ष है वहां शून्य है ये विश्व का ना कभी निर्माण हुआ है ना अंत होगा ।
भविष्य में जो घटित होगी जो भूतकाल में हो चुका है जो वर्तमान में घटित हो रहा है चाहे वाह स्वयं के जीवन की घटना हो देश दुनिया की घटना हो पूर्व निर्धारित है इसलिए भविष्य व भूतकाल को समझकर व स्मरण में रखकर वर्तमान जीवन के कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करना चाहिए।
 
अपने धर्म संस्कृति की कथा व मान्यता को स्वीकार करते हुए अपने कर्तव्य उत्तरदायित्व व उद्देश्य की पूर्ति के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करते रहना चाहिए विश्व में असुरक्षित स्थानों व मनुष्यों से सर्तक व सावधान रहकर अपने जीवन के सुख सुविधा व्यतीत करना चाहिए।
मनुष्य अनिर्वाय रूप से अपने कर्तव्य की पूर्ति के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करता जिसमें परिवार व निजी जीवन में ।
उत्तरदायित्व मनुष्य समाज के संचालन के लिए शासकीय कर्मचारी अधिकारी सैनिक नेता कलाकार खिलाड़ी मजदूर आदि बनकर भागीदारी देता है ।
उद्देश्य मनुष्यों के उद्देश्य सम्पत्ति प्रसिध्द उच्च पद प्राप्त करना या फिर सामान्य जीवनयापन करना या फिर धर्म संस्कृति क्षेत्र राष्ट्र के विकास के लिए मानसिक व शारीरिक परिश्रम करता है ।
 
==ध्यान की पद्धति==
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ध्यान का अभ्यास आगे बढ़ने के साथ मन शांत हो जाता है जिसको योग की भाषा में चित्तशुद्धि कहा जाता है। ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता। उसके बाद समाधिदशा की प्राप्ति होती है। योगग्रंथो के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है और साधक को कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है। पतंजलि योग में मुख्य आठ प्रकार की शक्तियों का वर्णन किया गया है।
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
{{टिप्पणीसूची}}मनुष्य जब ध्यान अपने आत्मा में केन्द्रित कर लेता है तब वहां दुख सुख व पाप पुन्य जिसे भावनाओं से मुक्त हो जाता है ।
कुण्डली चक्र इड़ा और पिग्ला नाड़ी दिखाया गया है की यहाँ वे समाप्त हो जाती है वहां सुष्मना नाड़ी प्रगट हो जाती है या दोनो नाड़ी मिलकर सुष्मना नाड़ी बन जाती है । ये जहां से शुरू होती है आज्ञा चक्र या आत्मा कह सकते है अर्थात आत्मा को समझ जाने पर संसारिक दुख सुख व पाप पुन्य की भावना समाप्त हो जाती है ।
फिर वहां साधक ब्रह्मलीन होने के लिए अग्रसर होता है वह स्थान या ज्ञान जो सहस्त्रा चक्र तक ले जाए ब्रह्म रन्ध्र कहलाती है ।
जब ज्ञेय और ज्ञाता का अंतर समाप्त हो जाए अर्थात जिसको जाने की इच्छा है वहां स्वयं ही हो ।
ज्ञेय अर्थात ब्रह्म और ज्ञाता अर्थात स्वयं ।
 
जब ब्रह्मलीन हो जाने पर ब्रह्म का असित्व ही ना रहे जाऐ तो उसी ब्रह्म के भीतर अर्थात विश्व में उसे खोजने पर वहां परमात्मा के रूप में परिकल्पना होता है जिसकी जिसे चेतना उसके लिए वैसा स्वरूप परमात्मा का और जिसका जिस स्वरूप में परमात्मा उसका वहां धर्म।
अल्लाह स्वरूप वाले मुस्लिम। == आल्लाहा के जैसा स्वरूप का वर्णन है वैसा ही है जिसकी चेतना जागृत हुई उसने देखा पहाड़ में सुबह का सूरज फूलों से भरा स्थान वहां एक भूरे मुस्लिम पहनावे में पुरुष मूंछे नही सिर्फ दाढ़ी रखा है पौढ़ अवस्था का पुरूष देखते ही ज्ञात हो जाता सामान्य शारीरिक संरचना बहुत ही तथा आभा मण्डल से दयावन परोपकारी है ।
परम् ब्रह्म स्वरूप वाले हिन्दू। == अंतरिक्ष में खड़े एक ऐसा पुरूष जो अग्नि के लपटों से बना है जिसके तैरह सर है हजारों हाथ जिसके समाने पंच तत्व के पुरूष हाथ जोड़े घुटनों के बल झुकें है पाप पुरूष अंधकार पुन्य पुरूष प्रकाश के सिर के ऊपर उसके पैर है सभी सप्त रंग की रोशनी उसके आंखों में है कानों में सभी विश्व की भाषा की लिपि प्रवेश कर रही है इतना विशाल है की पास जाने पर सिर्फ अग्नि ही रह जाती है ।
GOD FATHER वाले इसाई । === जिसे चित्र है वैसा ही है ।
वाहे गुरू वाले सिख । गुरूनानक के रूप में है एक बारह वर्ष के बालक के रूप में तलवार धारण किये हुए व विशाल गुरूनानक के रूप में वस्त्र पीले है ।
तीर्थंकर वाले जैन । महावीर स्वामी के रूप में।
बुध्द वाले बौध्द । बुध्द के रूप में।
यहूवा वाले यसूदी । यहूवा के रूप में।
सूर्य वाले शिन्तो ।___ दुश्य नहीं हुआ शायद सूर्य की तरहा
यिग यंग वाले ताओ ।____ दुश्य नहीं हुआ ।
कन्फूजियस ____ दृश्य नहीं हुआ।
 
विश्व के आदिवासी संस्कृति में एक ऐसे देव की परिकल्पना है जो इतना ज्यादा शक्तिशाली है की उसके समक्ष परिकल्पना में ही हाथ जुडते स्वयं को मनुष्य पाता है उसका स्वरूप भूमि से उत्पन्न होकर आसमान तक लगातर बढ़ाता ही जाता है कहा जाऐ सम्पूर्ण विश्व में मात्र गोंडवाना संस्कृति में ही उस देव की सही परिकल्पना की गई है उसके सिर पर दो सींग वाले मुकुट है शरीर में आदिवासी सप्त रंग पहनावा है विश्व में जीतने भी आदिवासी चाहे मुस्लिम इसाई बौध्द ताओ कन्यफूजियस हिन्दू उन सबके लिए यहीं स्वरूप है कहा जाऐ तो विश्व की सबसे प्रचीन संस्कृति गोंडवाना है और सभी आदिवासी चेतना जागृत होने पर गोंडवाना संस्कृति के ही देव को देखते है विश्व के आदिवासी विभिन्न संस्कृति के अनुयायी है इसलिए वैज्ञानिक गोंडवाना लैण्ड की परिकल्पना करके विश्व की सबसे प्रचीन संस्कृति है ऐसा माने है ।
परन्तु आधे आदिवासी संस्कृति के लोग क्षेत्रीय निवासी है ये बार बार उसी क्षेत्र में जन्म लेते है और कट्टर धर्मपंथी बार अपने राष्ट्र के किसी भी स्थान में जन्म लेता है जो दो तीन धर्म को मानता है वहां अंतराष्ट्रीय स्थानों पर जन्म लेता है जहां उसके दो तीन धर्म हो ।
परन्तु क्षेत्रीय आदिवासी संस्कृति के लोग एक ही परमात्मा के स्वरूप को अलग अलग रूप में पूजते है फिर भी उनमें से अधिक एक जाति समाज में बारम्बार जन्म लेते है इसलिए समय समय पर जब आदिवासी संस्कृति पर धर्म हावी होता है तब उनके चेतना धर्म का विरोध कर संस्कृति को अपनाते है परन्तु सभी नहीं आदिवासी संस्कृति सदैव रहती है ये धर्म नहीं बनती है मुस्लिम आदिवासी इसाई आदिवासी बौध्द आदिवासी ताओ कन्यफूजियस आदिवासी भी कहा जाऐ तो आधे आदिवासी अपने धर्म का विरोध कर अपने क्षेत्र में अपने संस्कृति को महत्व देते है ।
 
विश्व की सबसे प्रचीन संस्कृति गोंडवाना संस्कृति है ।
विश्व के प्रचीन धर्म हिन्दू मुस्लिम इसाई जैन बौद्ध ताओ कन्यफूजियस झेन शिंतो है ।
आदिवासी संस्कृति सभी धर्मों को आपास में जोड़ती है क्योंकि सभी धर्मों में आदिवासी है और उनके रीति रिवाज पहनावा रहन सहन खानपान पहनावा पूजा विधि विवाह विधि आदि संस्कार अपने धर्म से भिन्न है परन्तु कुछ सामान्यतः भी है लेकिन सभी धर्मों में ब्राम्ह्मण नहीं शिया सिन्नी नहीं है दिगम्बर नहीं इसी तरहा लेकिन इन्ही आदिवासी संस्कृति में कुछ कट्टर संस्कृतिवादी है जो अपने धर्म का तिरस्कार कर देते है और कुछ धर्मवादी है जो अपने धर्म को अधिक महत्व देते है प्रायः विश्व के आधे आदिवासी अपने धर्म के परमात्मा को ही प्रमुखता देते है और आधे संस्कृति के प्रमुख देव को इसे धर्म भी रह जाता है संस्कृति भी ये आपास में एक होकर भी दो रहते है ।
 
एक हिन्दू चेतना जागृत होने पर जितने भी धर्म के परमात्मा के स्वरूप को देखता है वे धर्म भारत में है जैसे मुस्लिम इसाई जैन बौद्ध ना के बराबर यहूदी और जितने धर्म के परमात्मा के स्वरूप की परिकल्पना नहीं होता है वहां नहीं है जिसे ताओ कन्यफूजियस शिंतो ।
 
सभी आदिवासी संस्कृति के पहनावा रहन सहन खानपान पहनावा पूजा विधि विवाह विधि आदि संस्कार में अत्याधिक समानता है परन्तु अपने धर्म से भी कुछ समानता व असमानता है सही मायने में आदिवासी एक अलग धर्म है फिर भी विधि के विधान अनुसार सदैव ये प्रचीन धर्म की संस्कृति ही रही है रहेगी और है । परन्तु विश्व में कुछ आदिवासी धर्म है जो उस क्षेत्र का मूल धर्म है वे कभी संस्कृति नहीं थे और ना रहेंगे।
कुछ क्षेत्रीय आदिवासी आदि अनादिकाल से अनंतकाल तक के लिए परदादा दादा पोता के सम्बन्ध से जुड़े है इसलिए व पूर्वजों को देवतुल्य मानते है आदिवासी संस्कृति में भी देव सामान पुरूष है जिनकी पत्नी पतिव्रता है हर जन्म के लिए ।
 
== इन्हें भी देखें==
* [[ध्यान]] (attention)