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सिंधु घाटी के लोगों में [[कला]] या [[सृजना]] का महत्त्व अधिक था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, [[धातु]] और [[पत्थर]] की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित [[मनुष्य]], [[वनस्पति]] और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर सूक्ष्मता से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध प्रदर्शित करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के अनुसार सिंधु सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।"
 
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