"नमाज़": अवतरणों में अंतर

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शहीद महिराब, इमाम मुत्तक़ीन हज़रत अली अलैहि अस्सलाम फ़लसफ़ा-ए-नमाज़ को इस तरह ब्यान फ़रमाते हैं:
{{Quotation|ख़ुदावंद आलम ने नमाज़ को इस लिए वाजिब क़रार दिया है ताकि इंसान तकब्बुर से पाक-ओ-पाकीज़ा हो जाएनमाज़ के ज़रीये ख़ुदा से क़रीब हो जाओ। नमाज़ गुनाहों को इंसान से इस तरह गिरा देती है जैसे दरख़्त से सूखे पत्ते गिरते हैं, नमाज़ इंसान को (गुनाहों से) इस तरह आज़ाद कर देती हैजैसे जानवरों की गर्दन से रस्सी खोल कर उन्हें आज़ाद किया जाता है हज़रत अली रज़ी अल्लाह अन्ना}}
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलाम अल्लाह अलैहा मस्जिद नबवी में अपने तारीख़ी ख़ुतबा में इस्लामी दस्तो रात के फ़लसफ़ा को ब्यान फ़रमाते हुए नमाज़ के बारे में इशारा फ़रमाती पैंहैं:
{{Quotation|ख़ुदावंद आलम ने नमाज़ को वाजिबफर्ज़ क़रार दिया ताकि इंसान को किबर-ओ-तकब्बुर और ख़ुद बीनी से पाक-ओ-पाकीज़ा कर दे}}
हिशाम बिन हुक्म ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहि अस्सलाम से सवाल किया : नमाज़ का क्या फ़लसफ़ा है कि लोगों को कारोबार से रोक दिया जाय और उन के लिए ज़हमत का सबब बने? इमाम अलैहि अस्सलाम ने इस के जवाब में फ़रमाया:
{{Quotation|नमाज़ के बहुत से फ़लसफ़े हैं उन्हें में से एक ये भी है कि पहले लोग आज़ाद थे और ख़ुदा-ओ-रसूल की याद से ग़ाफ़िल थे और उन के दरमयान सिर्फ क़ुरआन था उम्मत मुस्लिमा भी गुज़शता उम्मतों की तरह थी क्योंकि उन्हों ने सिर्फ दीन को इख़तियार कर रखा था और किताब और अनबया-ए-को छोड़ रखा था और उन को क़तल तक कर देते थे। नतीजा में इन का दीन पुराना (बैरवा) हो गया और उन लोगों को जहां जाना चाहिए था चले गए। ख़ुदावंद आलम ने इरादा किया कि ये उम्मत दीन को फ़रामोश ना करे लिहाज़ा इस उम्मत मुस्लिमा के ऊपर नमाज़ को वाजिब क़रार दिया ताकि हर रोज़ पाँच बार आँहज़रत को याद करें और उन का इस्म गिरामी ज़बान पर যक़ब लाएंगे और इस नमाज़ के ज़रीया ख़ुदा को याद करें ताकि इस से ग़ाफ़िल ना हो सकें और इस ख़ुदा को तर्क ना कर दिया जाय}}
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{{सलात}}
 
==[https://clickhitnews.blogspot.com/2019/05/disadvantages-missing-namaz.html सन्दर्भ ]==
{{टिप्पणीसूची}}
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/नमाज़" से प्राप्त