"गंगा नदी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Sundarbans.jpg|thumb|256px|[[सुंदरवन]]-विश्व का सबसे बड़ा [[डेल्टा]]-गंगा का मुहाना-[[बंगाल की खाड़ी]] में]] हुगली नदी [[कोलकाता]], [[हावड़ा]] होते हुए सुन्दरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में [[ब्रह्मपुत्र]] से निकली शाखा नदी [[जमुना नदी]] एवम् [[मेघना नदी]] मिलती हैं। अंततः ये ३५० कि॰मी॰ चौड़े [[सुन्दरवन]] [[डेल्टा]] में जाकर [[बंगाल की खाड़ी]] में सागर संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवम् उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी नवीन जलोढ़ से १,००० वर्षों में निर्मित समतल तथा निम्न मैदान है। यहाँ गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे [[गंगासागर|गंगा-सागर-संगम]] कहते हैं।<ref name="इंडियानेट">{{cite web |url= http://www.indianetzone.com/2/ganga_river.htm|title= गंगा रिवर|access-date=[[१४ जून]] [[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=इण्डिया नेट ज़ोन |language=अंग्रेज़ी}}</ref> विश्व का सबसे बड़ा [[डेल्टा]] ([[सुंदरवन|सुन्दरवन]]) बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध [[बंगाल बाघ|बंगाल टाईगर]] का निवास स्थान है।<ref name="इंडियानेट"/> यह डेल्टा धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से १५-२० मील (२४-३२ किलोमीटर) दूर स्थित लगभग १,८०,००० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।<ref>{{cite book |last=सिहं |first=सविन्द्र |title= भौतिक भूगोल |year=जुलाई २००२ |publisher=वसुन्धरा प्रकाशन |location=गोरखपुर |id= |page=२४७-२४८ |access-date= ३ जून २००९}}</ref> सुन्दरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लायी गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है, जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ तथा उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ [[जालंगी नदी]], [[इच्छामती नदी]], [[भैरव नदी]], [[विद्याधरी नदी]] और [[कालिन्दी नदी]] हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा [[चावल]] की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे [[जूट]] का उत्पादन होता है। [[कटका अभयारण्य|कटका अभ्यारण्य]] सुन्दरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुजरता है। यहाँ बड़ी तादाद में [[सुंदरी|सुन्दरी]] पेड़ मिलते हैं जिसके कारण इन वनों का नाम सुन्दरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर [[देवा]], [[केवड़ा]], [[तर्मजा]], [[आमलोपी]] और [[गोरान]] वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुन्दरवन में पायी जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/samayik/bbchindi/bbchindi/0711/07/1071107081_1.htm|title= सुंदरवन के मुहाने पर|access-date=[[२२ जून]] [[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=बीबीसी|language=}}</ref>
 
== [https://tyrosx.com/the-ganga-river/ सहायक नदियाँ] ==
{{main|गंगा की सहायक नदियाँ}}
[[File:Devprayag Bhagirathi Alaknanda.jpg|thumb|256px|right|देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती हुईं]] गंगा में उत्तर की ओर से आकर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, करनाली (घाघरा), ताप्ती, गंडक, कोसी और काक्षी हैं तथा दक्षिण के पठार से आकर इसमें मिलने वाली प्रमुख नदियाँ चम्बल, सोन, बेतवा, केन, दक्षिणी टोस आदि हैं। यमुना, गंगा की सबसे प्रमुख सहायक नदी है जो हिमालय की बन्दरपूँछ चोटी के आधार पर यमुनोत्री हिमखण्ड से निकली है।<ref>{{cite web |url= http://bharat.gov.in/knowindia/rivers.php|title=भारत के बारे में जानो|access-date=[[२१ जून]] [[२००९]]|format=|publisher=भारत सरकार|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://bharatbhraman.agoodplace4all.com/भारत-की-प्रमुख-नदियाँ/ |title=भारत की प्रमुख नदियाँ|access-date=[[२१ जून]] [[२००९]]|format=|publisher=भारत भ्रमण|language=}}</ref> हिमालय के ऊपरी भाग में इसमें टोंस<ref>{{cite web |url= http://hindi.indiawaterportal.org/?q=content/उत्तराखंड-की-प्रमुख-नदियाँ |title=उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ|access-date=[[२१ जून]] [[२००९]]|format=|publisher=इंडिया वाटर पोर्टल |language=}}</ref> तथा बाद में [[लघु हिमालय]] में आने पर इसमें गिरि और आसन नदियाँ मिलती हैं। चम्बल, बेतवा, शारदा और केन यमुना की सहायक नदियाँ हैं। चम्बल इटावा के पास तथा बेतवा हमीरपुर के पास यमुना में मिलती हैं। [[यमुना]] [[इलाहाबाद]] के निकट बायीं ओर से गंगा नदी में जा मिलती है। रामगंगा मुख्य हिमालय के दक्षिणी भाग [[नैनीताल]] के निकट से निकलकर [[बिजनौर जिला|बिजनौर जिले]] से बहती हुई [[कन्नौज]] के पास गंगा में मिलती है। करनाली नदी मप्सातुंग नामक हिमनद से निकलकर [[अयोध्या]], [[फैजाबाद]] होती हुई [[बलिया जिला|बलिया जिले]] के सीमा के पास गंगा में मिल जाती है। इस नदी को पर्वतीय भाग में कौरियाला तथा मैदानी भाग में [[घाघरा]] कहा जाता है। [[गंडक]] हिमालय से निकलकर [[नेपाल]] में शालीग्राम नाम से बहती हुई मैदानी भाग में नारायणी नदी का नाम पाती है। यह काली गंडक और त्रिशूल नदियों का जल लेकर प्रवाहित होती हुई सोनपुर के पास गंगा में मिलती है। [[कोसी]] की मुख्यधारा अरुण है जो गोसाई धाम के उत्तर से निकलती है। [[ब्रह्मपुत्र]] के घाटी के दक्षिण से सर्पाकार रूप में अरुण नदी बहती है, जहाँ यारू नामक नदी इससे मिलती है। इसके बाद [[एवरेस्ट]] के [[कंचनजंघा]] शिखरों के बीच से बहती हुई यह दक्षिण की ओर ९० किलोमीटर बहती है, जहाँ पश्चिम से सूनकोसी तथा पूरब से तामूर कोसी नामक नदियाँ इसमें मिलती हैं। इसके बाद कोसी नदी के नाम से यह [[शिवालिक]] को पार करके मैदान में उतरती है तथा बिहार राज्य से बहती हुई गंगा में मिल जाती है। [[अमरकंटक]] पहाड़ी (मध्यप्रदेश) से निकलकर सोन नदी [[पटना]] के पास गंगा में मिलती है। मध्य-प्रदेश के [[मऊ]] के निकट जनायाब पर्वत से निकलकर [[चम्बल नदी]] [[इटावा]] से ३८ किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी में मिलती है। बेतवा नदी मध्य प्रदेश में [[भोपाल]] से निकलकर उत्तर [[हमीरपुर]] के निकट यमुना में मिलती है। भागीरथी नदी के दायें किनारे से मिलने वाली अनेक नदियों में बाँसलई, द्वारका, मयूराक्षी, रूपनारायण, कंसावती और रसूलपुर प्रमुख हैं। जलांगी और माथा भाँगा या चूनीं बायें किनारे से मिलती हैं जो अतीत काल में गंगा या पद्मा की शाखा नदियाँ थीं। किन्तु ये वर्तमान समय में गंगा से पृथक होकर वर्षाकालीन नदियाँ बन गयी हैं।