"ज्योतिराव गोविंदराव फुले": अवतरणों में अंतर

→‎सन्दर्भ: कास्ट
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
→‎महात्‍मा की उपाधि: 1.दिनाक हिन्दू -अरेबिक में लिखा. 2.एक और पर्सिद्ध पुस्तक का नाम लिखा.
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 32:
 
== महात्‍मा की उपाधि ==
गरीबो और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' 1873 मे स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर ११ मई १८८८ (11may1888)को मुंबई में एक विशाल सभा में समाज सुधारक विठ्ठलराव कृष्णाजी वंडेकर ने उन्हें 'महात्मा' की उपाधि प्रदान कि। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं- तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत,गुलामगिरी.
महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी.
 
==इन्हें भी देखें==