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इयावेन पातरों- इण्डिया में निमाड़ के आदिवासी क्षेत्रों में विवाह की पत्रिकाओं में उनके पूर्वजों एवं प्राकृतिक तथ्यों का विवेचन- --- डॉ रमेश चौहान , सहायक प्राध्यापक हिन्दी, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नीमच (मध्यप्रदेश) 9893577428
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यह पत्रिका प्रकाशित करवाने वाले युवा का नाम है- सुनिल रावत । इनके पिता का नाम भेरूसिंह रावत है । इनका निवास स्थान क्षेत्र मध्यप्रदेश के धार जिले के कुक्षी तहसील के ग्राम भत्यारी (खाड़ापुरा) है । सुनिल से चर्चा करने पर ज्ञात हुआ कि वह आदिवासियों की पारम्परिक रूढ़िवादी व्यवस्था को एक प्राकृतिक वैज्ञानिक विधि कहता है । सुनिल का कहना है कि आदिवासियों की प्राकृतिक देवी देवताओं में
 
माता राणी काजल और कुल देवी माता घिरसरी की असीम कृपा से मेरी अर्थात सुनील रावत का इयाव हो रहा है । इसमें सभी को मैं सादर आमंत्रित कर रहा हूं । आखा आवजू अर्थात सभी को पधारने हेतु सादर आमंत्रित किया जाता है ।
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साथियों ! हम जानते हैं कि वर्तमान में तीव्र गति से विचारों के आधार पर जन चेतनाओं का प्रचार-प्रसार हो रहा है। जिसमें आदिवासियों की विचारधाराओं के माध्यम से समाज में बदलाव आ रहा है। पत्रिका के अध्ययन से स्पष्ट है कि आदिवासी समाज के युवा अपने पुरखों के प्राकृतिक विरासती वैज्ञानिक ज्ञान और तर्क की ओर लौट रहे है। इस पत्रिका में लिखा गया है कि धरती माता, गगन, वायु, अग्नि और जल( पांच तत्वों ) के वैज्ञानिक आशीर्वाद से इयाव का अवसर आया है । इस दृष्टि से यह सत्य है कि इन पांच तत्वों में से किसी एक की कमी हो जाने पर प्राणियों का जीवन सम्भव नहीं है । इसीलिए आदिवासियों का यह तर्क एक वैश्विक दृष्टि से वैज्ञानिक और प्राकृतिक है । इसमें अंधविश्वास का कोई स्थान नहीं है । सुनिल रावत ने यह वैज्ञानिक तथ्य अपने माता पिता से व्यावहारिक शिक्षा के रूप में अर्जित किया है । इसीलिए इन्होंने विवाह की पत्रिका में पाँच तत्वों, अनाज, पूर्वोजों की आत्माओं को साक्षी मानते हुए पत्रिकाओ को प्रकाशित करवाने का कार्य किया है । धार जिले से प्रकाशित इस विवाह पत्रिका से आप आंकलन कर सकते है कि पत्रिका में आदिवासियों के प्राकृतिक तर्क को महत्व दिया गया है जिसमें आदिवासियों के स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारियों एवं रूढ़ि व्यवस्थाओं को पत्रिका के माध्यम से वास्तविकता को बताने का प्रयास किया जा रहा है।
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1. आदिवासियों में उनके पूर्वजों को अन्न, भोजन, पानी आदि का सेवन करने से पूर्व अर्पित किया जाता है । आदिवासी समुदाय में जन्म से मृत्यु तक विशेष संस्कारो का पालन किया जाता है।आदिवासियों में बुजुर्ग या बड़वा किसी भी अच्छा कार्य करने से पहले प्रकृति के तत्वों का नाम लिया जाता है । जैसे- --
"हे ! चाँद, सूरज, आग, हवा, पानी, धरती माता, झाड़,बाघ-पक्षी, पहाड़ पत्थर, प्राकृतिक तरंगो, अनाज और पूर्वोजो की आत्माओ के नाम पर जमीन पर अर्पण किया जाता है।" (जैसा कि विक्रम अछालिया ने बताया है)
अध्ययन से स्पष्ट है कि यह आदिवासियों की वास्तविक नैसर्गिक या प्राकृतिक पूजा है, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि का जीवन चलता है, आदिवासी समाज ऐसी ही वास्तविकता का पूजक है।
2. समाज के जिन क्रान्तिकारियों के द्वारा समाज को स्वाभिमान मिला है, उन्हें भी वे विवाह पत्रिका में याद किया कर रहे है, सुनिल रावत का कहना है कि जिनके विचारों के माध्यमो से समाज आज मान- सम्मान, मर्यादाओं और इज्जत के साथ जीवन जी रहा है।
3. रूढ़ि व्यवस्था:-- पुर्खो के निसर्ग विरासती ज्ञान पर आधारित जीवन जीना ही रूढ़ि व्यवस्था है, यही आदिवासियों की विशिष्ट पहचान है ।
विवाह पत्रिका हस्तकला से निर्मित पाटी या उडे को प्रकाशित किया गया है, जिसमें दूल्हन के श्रंगार की वेशभूषा रखने के काम में लिया जाता है । आदिवासी परम्पराओं के रीति -रिवाज के अनुसार प्रत्येक व्यावहारिक संस्कृति से पहले में लाने वाली सामाग्री को पाटी या उडे में समाहित करना बहुत जरुरी है।
बुहनि/उडी/पाटी:- बॉस के कामटी की गोल आकार में बनी होती है, ये पाटी दो प्रकार की होती है, स्त्रलिंग( फीमेल) और पुर्लिंग ( मेल) इनकी बनावट भी अलग- अलग होती है।
4. चौक चिन्ह:-- इस चिन्ह को आटे, चावल और जीरा से बनाते है। इस चिन्ह के द्वारा नैसर्गिक आदिवासियत एंटी क्लॉक वाइज स्पिन को दर्शाने की कोशिश किया गया है। जैसा:-- नाचने का शैली , पूजा पद्धति का शैली , घट्टी घूर्णन, हल एक सिरे से दूसरे सिरे पर मोड़ने की शैली , खलियानों में बेलों कोई जोड़ने पर घूमाने की शैली , अमरबेल का पेड़ों के ऊपर चढ़ना, समुद्री साइक्लोन, धरती भी अपनी धुरी पर 23 1/2 डिग्री पर एंटी क्लॉक वाइज घूर्णन, पृथ्वी भी सूर्य का चक्कर एंटी क्लॉक वाइज सर्कल पर चक्कर लगाती है। यही वैज्ञानिक विधि का व्यावहारिक ज्ञान भारत के आदिवासियों को सदियों से रहा है । वर्तमान में आदिवासियों की इसी प्राकृतिक जीवनशैली को आदिवासियत जीवन शैली कहा गया है। यह प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन किया जा सकता है कि आदिवासियों में विवाह अवसरों पर नाना प्रकार के चिन्हों को दीवारों पर बनाये जाते है। जिसका सीधा संबंध प्रकृति प्रदत्त जीवन शैली है ।
5. JAYS:--- इस पत्रिकामें लिखा गया है कि जय आदिवासी युवा शक्ति । इसका संक्षिप्त नाम है जयस( Jays) विक्रम अछालिया ने एक चर्चा में बताया कि जयस की स्थापना दिनांक 16 मई 2013 रविवार को जिला बड़वानी , मध्यप्रदेश में किया गया है। उन्होंने कहा कि यह वैचारिक संगठन है। जो समाज में बेहतर जन- जागरूकता की बुलंद आवाज बन चुका है।आदिवासियों की वर्तमान दशा एवं दिशा के अध्ययन से स्पष्ट है कि आदिवासी समाज सदियों से प्रकृति प्रदत्त जीवन शैली अपनाने के कारण बनावटी दुनिया से दूर रहा है । सम्भवत बनावटी दुनिया वालों ने उन्हें तमाम बेडियो में दिया है, सुनिल रावत का कहना है कि इसीलिए आदिवासियों को उनके नैसर्गिक पुर्वजों के प्राकृतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान की ओर लौटना यथार्थ जन चेतना है।
भाई सुनील रावत की शादी में आप सभी को मेरी और से भी सादर निमंत्रण है।
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जय आदिवासी युवा शक्ति की वैचारिक पहल
जय आदिवासी ।
 
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