"मुहम्मद बिन तुग़लक़": अवतरणों में अंतर

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* राजधानी परिवर्तन (१३२६-२७ ई॰)
* सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (१३२९-३० ई॰)
* खुरासन एवं काराचिल का अभियान आदिआदि।
 
== दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि ==
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== राजधानी परिवर्तन ==
तुग़लक़ ने अपनी दूसरी योजना के अन्तर्गत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि स्थानान्तरित किया। देवगिरि को “कुव्वतुल इस्लाम” भी कहा गया। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरि का नाम 'कुतुबाबाद' रखा था और मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने इसका नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया। सुल्तान की इस योजना के लिए सर्वाधिक आलोचना की गई। मुहम्मद तुग़लक़ द्वारा राजधानी परिवर्तन के कारणों पर इतिहासकारों में बड़ा विवाद है, फिर भी निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि, देवगिरि का दिल्ली सल्तनत के मध्य स्थित होना, मंगोल आक्रमणकारियों के भय से सुरक्षित रहना, दक्षिण-भारत की सम्पन्नता की ओर खिंचाव आदि ऐसे कारण थे, जिनके कारण सुल्तान ने राजधानी परिवर्तित करने की बात सोची। मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी पूर्णतः असफल रही और उसने 1335 ई. में दौलताबाद से लोगों को दिल्ली वापस आने की अनुमति दे दी। राजधानी परिवर्तन के परिणामस्वरूप दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति का विकास हुआ, जिसने अंततः बहमनी साम्राज्य के उदय का मार्ग खोला। अनुभव मौर्य
 
== सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन ==
तीसरी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ ने सांकेतिक व प्रतीकात्मक सिक्कों का प्रचलन करवाया। सिक्के संबंधी विविध प्रयोगों के कारण ही एडवर्ड टामस ने उसे ‘धनवानों का राजकुमार’ कहा है। मुहम्मद तुग़लक़ ने 'दोकानी' नामक सिक्के का प्रचलन करवाया। बरनी के अनुसार सम्भवतः सुल्तान ने राजकोष की रिक्तता के कारण एवं अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को सफल बनाने हेतु सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करवाया। सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था। सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई। सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहाँ के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। सुल्तान को अपनी इस योजना की असफलता पर भयानक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा और मुहम्मद बिन तुगलक के किले के बाहर तांबे के सिक्कों का ढेर जमा हो गया और सदियों तक वहीं पड़ा रहा।पड़ा।
 
== खुरासान एवं कराचिल अभियान ==
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== मृत्यु ==
अपने शासन काल के अन्तिम समय में जब सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ गुजरात में विद्रोह को कुचल कर तार्गी को समाप्त करने के लिए सिंध की ओर बढ़ा, तो मार्ग में थट्टा के निकट गोंडाल पहुँचकर वह गंभीर रूप से बीमार हो गया। यहाँ पर सुल्तान की २० मार्च १३५१ को मृत्यु हो गई। उसके मरने के पर इतिहासकार बरनी ने कहा कि, “सुल्तान को उसकी प्रजा से और प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।” इसामी ने सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ को इस्लाम धर्म का विरोधी बताया है। डॉ॰ ईश्वरी प्रसाद ने उसके बारे में कहा है कि, “मध्य युग में राजमुकुट धारण करने वालों में मुहम्मद तुग़लक़, निःसंदेह योग्य व्यक्ति था। मुस्लिम शासन की स्थापना के पश्चात् दिल्ली के सिंहासन को सुशोभित करने वाले शासकों में वह सर्वाधिक विद्धान एवं सुसंस्कृत शासक था।” उसने अपने सिक्कों पर “अल सुल्तान जिल्ली अल्लाह”, “सुल्तान ईश्वर की छाया”, सुल्तान ईश्वर का समर्थक है, आदि वाक्य को अंकित करवाया। मुहम्मद बिन तुग़लक़ एक अच्छा कवि और संगीत प्रेमी भी था।
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://www.latesthindigk.com/saamaany-gyaan/itihaas/madhy-bhaarat/muhammad-bin-tughluq/causes-of-muhammad-tumhlaks-failure/ मुहम्मद तुग़लक़ की विफलता के कारण]
 
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