"श्रीलाल शुक्ल": अवतरणों में अंतर
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'''श्रीलाल शुक्ल''' (31 दिसम्बर 1925 - 28 अक्टूबर 2011) [[हिन्दी]] के प्रमुख [[साहित्यकार]] थे। वह समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण [[व्यंग्य]] लेखन के लिये विख्यात थे।
{{ज्ञानसन्दूक लेखक
| नाम = श्रीलाल शुक्ल
| चित्र = [[Srilal.JPG]]
| चित्र आकार =150px
| चित्र शीर्षक = श्रीलाल शुक्ल
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| प्रभाव डालने वाला = <!--यह लेखक किससे प्रभावित होता है-->
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| हस्ताक्षर =[[Signature of srilal shukla.jpg]]
| जालपृष्ठ =
| टीका-टिप्पणी = [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], 1999 में व्यास सम्मान, 2005 में यश भारती, 2008 में [[पद्मभूषण]], 2009 का [[ज्ञानपीठ पुरस्कार|ज्ञानपीठ सम्मान]] 18 अक्टूबर 2011, लोहिया सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शरद जोशी सम्मान समेत अनेक सम्मान व पुरस्कार।
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श्रीलाल शुक्ल (जन्म-31 दिसम्बर 1925 - निधन- 28 अक्टूबर 2011) को [[लखनऊ|लखनऊ जनपद]] के समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये विख्यात साहित्यकार माने जाते थे। उन्होंने 1947 में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से स्नातक परीक्षा पास की। 1949 में [[राज्य सिविल सेवा]]से नौकरी शुरू की। 1983 में [[भारतीय प्रशासनिक सेवा]] से निवृत्त हुए। उनका विधिवत लेखन 1954 से शुरू होता है और इसी के साथ [[हिंदी]] गद्य का एक गौरवशाली अध्याय आकार लेने लगता है। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास '[[सूनी घाटी का सूरज]]' (1957) तथा पहला प्रकाशित व्यंग '[[अंगद का पाँव]]' (1958) है। स्वतंत्रता के बाद के भारत के ग्रामीण जीवन की मूल्यहीनता को परत दर परत उघाड़ने वाले उपन्यास '[[राग दरबारी]]' (1968) के लिये उन्हें [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके इस उपन्यास पर एक [[दूरदर्शन]]-[[धारावाहिक]] का निर्माण भी हुआ। श्री शुक्ल को [[भारत सरकार]] ने [[2008]] में [[पद्मभूषण]] पुरस्कार से सम्मानित किया है।<ref>{{cite web |url= http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/2732108.cms|title= कोई भारत रत्न नहीं, सचिन, टाटा को विभूषण |access-date=[[25 जनवरी]] [[2008]]|format= एचटीएम|publisher=नवभारत|language= hi}}</ref>
== व्यक्तित्व ==
श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व अपनी मिसाल आप था। सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजक। श्रीलाल शुक्ल [[अंग्रेज़ी]], [[उर्दू]], [[संस्कृत]] और [[हिन्दी]] भाषा के विद्वान थे। श्रीलाल शुक्ल [[संगीत]] के शास्त्रीय और सुगम दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। 'कथाक्रम' समारोह समिति के वह अध्यक्ष रहे। श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, मगर उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। उन्हें नई पीढ़ी भी सबसे ज़्यादा पढ़ती है। वे नई पीढ़ी को सबसे अधिक समझने और पढ़ने वाले वरिष्ठ रचनाकारों में से एक रहे। न पढ़ने और लिखने के लिए लोग सैद्धांतिकी बनाते हैं। श्रीलाल जी का लिखना और पढ़ना रुका तो स्वास्थ्य के गंभीर कारणों के चलते। श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व बड़ा सहज था। वह हमेशा मुस्कुराकर सबका स्वागत करते थे। लेकिन अपनी बात बिना लाग-लपेट कहते थे। व्यक्तित्व की इसी ख़ूबी के चलते उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए भी व्यवस्था पर करारी चोट करने वाली '''राग दरबारी''' जैसी रचना हिंदी साहित्य को दी।
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