"सीतापुर जिला": अवतरणों में अंतर

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राजधानी के करीब सीतापुर जिले में ऐतिहासिक पवित्र तीर्थ स्थल '''नैमिषारण्य''' दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसे नीमसार के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सारे धामों की यात्रा करने के बाद यदि इस धाम की यात्रा न की गई तो आपकी यात्रा अपूर्ण है। इस धाम का वर्णन पुराणों में भी पाया जाता है। नीमसार सीतापुर जिले के एक गांव में है। मान्यता यह है कि पुराणों की रचना महर्षि व्यास ने इसी स्थान पर की थी। यह वह जगह है, जहां पर पहली बार सत्यनारायण की कथा हुई थी।
 
छीतियापुर का नाम महाराजा छिता पासी के नाम से पड़ा है जिन्होंने छिता पुर को बसाया था महाराजा छिता पासी का राज्य कनौज के राजा जयचन्द के सम कालीन था महाराज छिता पासी के किले के भग्नावशेष आज के सीतापुर जिले के पूर्वी छोर पर सीता पुर लखनऊ राजमार्ग पर फ्लाई उड़ फैक्ट्री के पास आज भी उनकी सौर्य गाथा का जीता जागता प्रमाण है छितियापुर नाम का चलन महाराजा छिता पासी के समय से मुगलो के शासन काल तक चलता रहा अंग्रेजी शासन काल में छितियापुर का नाम करण करके सीतापुर किया गया महोबा से आल्हा उदल को निकाल देने के बाद आल्हा उदल कन्नौज के राजा जयचन्द के यहाँ सरण ली जयचन्द के लड़के लाखन सिंह की दोस्ती आल्हा उदल से थी लाखन सिंह अपना राज्य विस्तार करने के लिए उदल को साथ लेकर अपनी सेना लेकर निकल पड़े लाखन सिंह और उदल छितियापुर के महाराजा छिता पासी के किले पर पड़ाव डाला जाकर और छिता पासी के पास सुचना भेजी की वो मेरी स्वधीनता शिवकर करले नही तो पूरा राज्य छीन लिया जायेगा जब ये सुचना महाराजा छिता पासी के पास पहुँची तो महाराज छिता पासी साफ साफ चेतावनी देदी की स्वधीनता कायर लोग शिवकार करते है योद्धा नही इतना सुनकर लाखन सिंह और उदल झुंझला उठे लाखन सिंह अगले दिन ही युद्ध का ऐलान कर दिया छिता पासी की सेना भाला धारी और धनुर धारी में निपुड थी छिता पासी खुद धनुर्धारी थे अगले दिन ही दोनों तरफ की सेनाये आमने सामने आगयी भिषड युद्ध हुआ और इस युद्ध में उदल जख्मी हो गये लाखन सिंह उदल को युद्ध भूमि से लेकर भाग गए जब इस बात का आल्हा को पता चला तो वो अगले ही दिन सेना लेकर निकल पड़े युद्ध भूमि की तरफ अगले दिन फिर युद्ध हुआ छिता पासी की सेना ने जमकर लोहा लिया घमसान युद्ध हुआ दोनों तरफ की सेनाओं में अफरा तफरी मची थी तब तक छिता पासी आल्हा और लाखन के बीच में फॅस गये दोनों तरफ मोर्चा सम्भालना मुश्किल पड़ गया और वो उन दोनों से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए कलान्तर में छितियापुर मुसलमानों के स्वाधीन हो गया फिर उसके बाद अंग्रेजो के स्वाधीन हो गया अंग्रेजो ने इसका नाम करण सीतापुर किया महाराजा छिता पासी का किला टिल्ले का रूप ले चुका है इसका आधा हिसा काटकर रेलवे लाइन निकली गयी है दूसरे हिस्से को काटकर राष्ट्रीय राज मार्ग निकाल दिया गया है और एक हिस्से में सुचैना देवी का मंदिर है जो महाराजा छिता पासी की कुल देवी थी पूर्वी छोर में जो जमीन बंजर अंकित है
 
== भौगोलिक स्थिति ==