"दशरथ": अवतरणों में अंतर
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== दशरथ का देहावसान ==
[[चित्र:Kaikeyi vilap.jpg|thumb| कैकेयी का कोपभवन में दशरथ से दो वर मांगना]]
राम के [[सीता]] के विवाह के बाद दशरथ ने यह घोषणा कर दी कि राम का राज्याभिषेक तुरन्त होगा। कैकेयी की एक कुबड़ी दासी थी [[मन्थरा]] जिसने कैकेयी को बचपन से पाल-पोस कर बड़ा किया था और कैकेयी के विवाह के बाद मानो उसके दहेज़ में उसके साथ भेजी गई थी। वह एक कुटिल राजनीतिज्ञ थी। उसने कैकेयी को मंत्रणा दी कि राम के राज्याभिषेक से कैकेयी का भला नहीं वरन् अनहित ही होने वाला है। उसने कैकेयी को राजा दशरथ से अपने दो वर मांगने की सलाह दी। यह घटना उस समय की है जब दशरथ देवों के साथ मिलकर असुरों के विरुद्ध युद्ध कर रहे थे। असुरों को खदेड़ते समय उनका रथ युद्ध के कीचड़ (रक्त, पसीना तथा मृतक शरीर) में फँस गया। उस रथ की सारथी स्वयं कैकेयी थीं। उसी समय किसी शत्रु ने युधास्त्र चला कर दशरथ को घायल कर दिया तथा वह मरणासन्न हो गये। यदि कैकेयी उनके रथ को रणभूमि से दूर ले जाकर उनका उपचार नहीं करतीं तो दशरथ की मृत्यु निश्चित थी। दशरथ ने होश में आकर कैकेयी से कोई भी दो वर मांगने का आग्रह किया। उस समय अयोध्या साम्राज्य की परिस्थितियाँ अनुकूल थीं तथा सभी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में जी रहे थे अतः कैकेयी ने वह वर मांगने से इनकार कर दिया और यह कह कर टाल दिया कि समय आने पर वह यह वर मांग लेंगी। अब जबकि दुष्ट मंथरा के बहकावे में आकर कैकेयी को यह आभास हो गया कि श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद उसका अनहित ही होने वाला है, उसने कोपभवन में जाने का विचार कर लिया। उस काल में [[रनिवास]] में एक कोपभवन होता था जहाँ कोई भी रानी किसी भी कारणवश कुपित होकर अपनी असहमति व्यक्त कर सकती थी और राजा का कर्तव्य होता था कि उसे कोपभवन के प्रांगण में जाकर उस रानी को मनाना पड़ता था। राजा दशरथ ने भी वैसा ही किया। जब कैकेयी ने अपने दो वर मांगने की इच्छा दर्शाई तो कामोन्मुक्त राजा दशरथ राज़ी हो गये। यहाँ पर यह नहीं भूलना चाहिये कि कैकेयी दशरथ की सबसे युवा रानी थी और राजा दशरथ स्वयं
[[चित्र:Rama taking leave of Dasharatha.jpg|thumb|left|राम दशरथ से वन जाने की आज्ञा लेते हुये]]
राम को जब इस विषय की आभास हुआ तो वह स्वयं ही दशरथ के समीप गये और उनसे आग्रह किया कि रघुकुल की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए वह कैकेयी को दोनों वर प्रदान कर दें। उन्होंने हठ करके राजा को इन बातों के लिए मना लिया और संन्यासियों के वस्त्र पहनकर [[सीता]] तथा [[लक्ष्मण]] के साथ वन की ओर निकल पड़े। दशरथ यह सदमा बर्दाश्त न कर सके और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/ayodhya/sarga65/ayodhya_65_frame.htm | title = दशरथ का देहावसान | accessdate = 2012-05-07}}</ref><br />
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