"शारदा देवी": अवतरणों में अंतर

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1886 ई. में रामकृष्ण के देहान्त के बाद सारदा देवी तीर्थ दर्शन करने चली गयीं। वहाँ से लौटने के बाद वे कामारपुकुर में रहने आ गयीं। पर वहाँ पर उनकी उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण भक्तों के अत्यन्त आग्रह पर वे कामारपुकुर छोड़कर [[कलकत्ता]] आ गयीं।
कलकत्ता आने के बाद सभी भक्तों के बीच संघ माता के रूप में प्रतिष्ठित होकर उन्ह़ोनेउन्होंने सभी को माँ रूप में संरक्षण एवं अभय प्रदान किया। अनेक भक्तों को दीक्षा देकर उन्हें आध्यात्मिक मार्ग में प्रशस्त किया।
प्रारंभिक वर्षों में [[स्वामी योगानन्द]] ने उनकी सेवा का दायित्व लिया। [[स्वामी सारदानन्द]] ने उनके रहने के लिए कलकत्ता में उद्भोदनउद्बोधन भवन का निर्माण करवाया।
 
=== अन्तिम जीवन ===
गुमनाम सदस्य