"शारदा देवी": अवतरणों में अंतर

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*ध्यान करो इससे तुम्हारा मन शांत और स्थिर होगा और बाद में तुम ध्यान न करे बिना रह नहीं पाओगे।
*चित्त ही सबकुछ हैं। मन को ही पवित्रता और अपवित्रता का आभास होता हैं।है। एक मनुष्य को पहले अपने मन को दोषी बनाना पड़ता हैंहै ताकि वह दूसरे मनुष्य के दोष देख सके।
*"मैं तुम्हेतुम्हें एक बात बताती हूँ, अगर तुम्हें मन की शांति चाहिए तो दूसरों के दोष मत देखो। अपने दोष देखो। सबको अपना समझो। मेरे बच्चे कोई पराया नहीं हैंहै , पूरी दुनिया तुम्हारी अपनी हैं।है।
*इंसान को अपने गुरु के प्रति भक्ति होनी चाहिए। गुरु का चाहे जो भी स्वाभावस्वभाव हो शिष्य को मुक्ति अपने गुरु पर अटूट विश्वास से ही मिलती हैं।
 
== आगे अध्ययन के लिए ==