"सूर्य ग्रहण": अवतरणों में अंतर
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सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये। बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिये व दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना और भोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्देश्य करके जल में जल डाल देना चाहिए। ऐसा करने से देनेवाले को उसका फल प्राप्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये।<ref>{{cite web |url=http://www.hariomgroup.org/hariombooks/misc/Hindi/grahan-vidhi-nishedh.html |title=ग्रहण विधि निषेध |accessmonthday= |accessyear= |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ज्योतिष की सार्थकता | language = hi}}</ref>
हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह ठोस धरातल के पिण्ड है जबकि दो ग्रह राहू और केतू गैसिय पिण्ड है
केतू ग्रह की कक्षा चन्द्रमा के निकट व राहू ग्रह की कक्षा सूर्य के निकट हैै
अतः गैसीय पिण्ड होने के कारण केतू ग्रह चन्द्रमा की कक्षा में प्रवेश करता हुआ चन्द्रमा को ईंधन की सप्लाई करता हुआ आगे निकल वापिस अपनी कक्षा में आ जाता है और
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