"उल्लाला": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=मई 2019}}
{{for|कर्नाटक के शहर|उल्लाल}}
'''''उल्लाला''''' छन्द हिन्दी [[छन्दशास्त्र]] का एक पुरातन [[छन्द]] है। <ref>{{cite web|url=http://www.divyanarmada.in/2013/01/blog-post_9864.html?m=1|title=छन्द सलिला : उल्लाला संजीव सलिल|work=divyanarmada.in|accessdate=1 May 2019}} </ref> इसकी स्वतंत्र रूप से कम ही रचना की गई है। [[आदिकाल|वीरगाथा काल]] में उल्लाला तथा [[रोला|रोले]] को मिलाकर [[छप्पय]] की रचना किये जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित है। इसका एक उदाहरण निम्न है:-
<blockquote>
:यों किधर जा रहे हैं बिखर,कुछ बनता इससे कहीं।
:संगठित ऐटमी रूप धर,शक्ति पूर्ण जीतो मही।। <ref> {{cite web|url=https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6#छंदों_के_कुछ_प्रकार#उल्लाला|title=छंदों के कुछ प्रकार-उल्लाला|work=wikipedia.org|accessdate=1 May 2019}} </ref>
</blockquote>
 
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==चरण तथा मात्राएँ==
 
उल्लाला 13-13 मात्राओं के 2 सम चरणों का छन्द है। <ref>{{cite web|url=https://m.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6?page=1|title=उल्लाला छंद (भारतकोश) पृष्ठ 1|work=bharatdiscovery.org|accessdate=1 May 2019}} </ref> उल्लाल 15-13 मात्राओं का विषम चरणी छन्द है, जिसे [[हेमचंद्राचार्य]] ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल इन्हें एक छन्द के दो भेद मानते हैं।
 
'भानु' के अनुसार-<blockquote>उल्लाला तेरा कला, दश्नंतर इक लघु भला।सेवहु नित हरि हर चरण, गुण गण गावहु हो शरण।।<ref>{{cite web|url=https://m.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%89%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%9B%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6?page=2|title=उल्लाला छंद (भारतकोश) पृष्ठ 2|work=bharatdiscovery.org|accessdate=1 May 2019}} </ref></blockquote> अर्थात् उल्लाला में 13 मात्राएँ होती हैं। दस मात्राओं के अंतर पर (अर्थात् 11 वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।
 
[[दोहा|दोहे]] के चार विषम चरणों से उल्लाला छन्द बनता है। यह 13-13 मात्राओं का समपाद मात्रिक छन्द है, जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन 8+3+2 है। अंत में एक गुरु या 2 लघु का विधान है।