"आर्यभट्ट द्वितीय": अवतरणों में अंतर
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== योगदान ==
[[ब्रह्मगुप्त]] और [[लल्ल]] ने अयनचलन के संबंध में काई चर्चा नहीं की है, परंतु आर्यभट्ट द्वितीय ने इसपर बहुत विचार किया है। अपने ग्रंथ मध्यमाध्याय के श्लोक 11-12 में इन्होंने अयनबिंदु को एक ग्रह मानकर इसके कल्पभगण की संख्या 5,78,159 लिखी है जिससे अयनबिंदु की वार्षिक गति 173 विकला होती है जो बहुत ही अशुद्ध है। स्पष्टाधिकार में स्पष्ट अयनांश जानने के लिए जो रीति बताई गई है उससे प्रकट होता है कि इनके अनुसार अयनांश 24 अंश से अधिक नहीं हो सकता और अयन की वार्षिक गति भी सदा एक सी नहीं रहती। कभी घटते-घटते शून्य हो जाती है और कभी बढ़ते-बढ़ते 173 विकला हो जाती है। इससे सिद्ध होता है कि आर्यभट्ट द्वितीय का समय वह था जब अयनगति के
== बाहरी कड़ियाँ ==
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