"वट सावित्री": अवतरणों में अंतर

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तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है : सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है<ref>{{cite book|url=https://archive.org/stream/cu31924079584821/cu31924079584821_djvu.txt}}</ref>। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं।
 
वट सावित्री व्रत<ref>{{Cite news|url=https://www.chaitanyabharatnews.com/june-month-vrat-and-festivals-list/|title=हिन्दू धर्म के लिए बेहद खास रहेगा जून का महीना, इस महीने आने वाले हैं ये महत्वपूर्ण तीज-त्योहार|last=Sharma|first=Aayushi|date=01 Jun 2019|work=Chaitanya Bharat News|access-date=}}</ref> में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। [[पीपल]] की तरह [[वट]] या [[बरगद]] के पेड़ का भी विशेष महत्व है। [[पाराशर]] मुनि के अनुसार- 'वट मूले तोपवासा' ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो।
 
== दर्शनिक दृष्टि ==
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[[श्रेणी:संस्कृति]]
[[श्रेणी:हिन्दू त्यौहार]]
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