"उपपुराण": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
→शिव, देवीभागवत, हरिवंश एवं विष्णुधर्मोत्तर: सन्दर्भ जोड़ा। |
|||
पंक्ति 43:
== शिव, देवीभागवत, हरिवंश एवं विष्णुधर्मोत्तर ==
[[आचार्य बलदेव उपाध्याय]] ने पर्याप्त तर्कों के आधार पर सिद्ध किया है कि [[शिव पुराण]] वस्तुतः एक उपपुराण है और उसके स्थान पर [[वायु पुराण]] ही वस्तुतः महापुराण है।<ref>पुराण-विमर्श, आचार्य बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-२००२, पृष्ठ-१०५.</ref> इसी प्रकार [[देवीभागवत]] भी एक उपपुराण है।<ref>पुराण-विमर्श, आचार्य बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण-२००२, पृष्ठ-१०९-११७.</ref> परन्तु इन दोनों को उपपुराण के रूप में स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि स्वयं विभिन्न पुराणों में उपलब्ध अपेक्षाकृत अधिक विश्वसनीय सूचियों में कहीं इन दोनों का नाम उपपुराण के रूप में नहीं आया है। दूसरी ओर रचना एवं प्रसिद्धि दोनों रूपों में ये दोनों महापुराणों में ही परिगणित रहे हैं। पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने बहुत पहले विस्तार से विचार करने के बावजूद कोई अन्य निश्चयात्मक समाधान न पाकर यह कहा था कि 'शिव पुराण' तथा 'वायु पुराण' एवं 'श्रीमद्भागवत' तथा 'देवीभागवत' महापुराण ही हैं और कल्प-भेद से अलग-अलग समय में इनका प्रचलन रहा है।<ref>अष्टादशपुराण-दर्पण, पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र, खेमराज श्रीकृष्णदास, मुंबई, संस्करण- जुलाई २००५, पृष्ठ-१३९ एवं १९४.</ref> इस बात को आधुनिक दृष्टि से इस प्रकार कहा जा सकता है कि भिन्न संप्रदाय वालों की मान्यता में इन दोनों कोटि में से एक न एक गायब रहता है। इसी कारण से महापुराणों की संख्या तो १८ ही रह जाती है, परन्तु संप्रदाय-भिन्नता को छोड़ देने पर संख्या में दो की वृद्धि हो जाती है। इसी प्रकार प्राचीन एवं रचनात्मक रूप से परिपुष्ट होने के बावजूद [[हरिवंश]] एवं [[विष्णुधर्मोत्तर]] का नाम भी 'बृहद्धर्म पुराण' की अपेक्षाकृत पश्चात्कालीन<ref>१३वीं या १४वीं शती में बंगाल में प्रणीत। द्रष्टव्य- धर्मशास्त्र का इतिहास, चतुर्थ भाग, डॉ॰ पाण्डुरङ्ग वामन काणे, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण-१९९६, पृष्ठ-४१८.</ref> सूची को छोड़कर पुराण या उपपुराण की किसी प्रामाणिक सूची में नहीं आता है। हालाँकि इन दोनों का कारण स्पष्ट ही है। 'हरिवंश' वस्तुतः स्पष्ट रूप से [[महाभारत]] का खिल (परिशिष्ट) भाग के रूप में रचित है और इसी प्रकार 'विष्णुधर्मोत्तर' भी [[विष्णु पुराण]] के उत्तर भाग के रूप में ही रचित एवं प्रसिद्ध है। [[नारद पुराण]] में बाकायदा विष्णु पुराण की विषय सूची देते हुए 'विष्णुधर्मोत्तर' को उसका उत्तर भाग बता कर एक साथ विषय सूची दी गयी है।<ref>बृहन्नारदीयपुराणम्, पूर्वभागः -९४-१७ से २०; बृहन्नारदीयपुराणम्, भाग-१, अनुवादक- तारिणीश झा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, संस्करण-२०१२, पृष्ठ-९४६.</ref><ref>संक्षिप्त नारदपुराण, गीताप्रेस गोरखपुर, प्रथम संस्करण- संवत्-२०५७, पृष्ठ-५०५.</ref> अतः 'हरिवंश' तो महाभारत का अंग होने से स्वतः पुराणों की गणना से हट जाता है। 'विष्णुधर्मोत्तर' विष्णु पुराण का अंग-रूप होने के बावजूद नाम एवं रचना-शैली दोनों कारणों से एक स्वतंत्र पुराण के रूप में स्थापित हो चुका है। अतः
== औप पुराण ==
|