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[[चित्र:Saint Kabir with Namdeva, Raidas and Pipaji. Jaipur, early 19century, National Museum New Delhi (2).jpg|अंगूठाकार|संत कबीर]]
'''कबीर पंथ''' या '''सतगुरु कबीर पंथ''' [[भारत]] के [[भक्तिकाल|भक्तिकालीन]] [[कवि]] [[कबीर]] की शिक्षाओं पर आधारित एक [[पंथ|संप्रदाय]] है। कबीर के शिष्य धर्मदास ने उनके निधन के लगभग सौ साल बाद इस पंथ की शुरुआत की थी। प्रारंभ में दार्शनिक और नैतिक शिक्षा पर आधारित यह पंथ कालांतर में धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तित हो गया। कबीर पंथ के अनुयायियों में [[हिंदू]], [[मुसलमान]], [[बौद्ध]]
अपने काव्य में कबीर ने पंथ को महत्त्वहीन बताते हुए उसका उपहास उड़ाया है।
''"ऐसा जोग न देखा भाई। भूला फिरै लिए गफिलाई॥
महादेव को पंथ चलावै। ऐसो बड़ो महंथ कहावै॥"''<ref>कबीर बीजक, शुकदेव सिंह, नीलाभ प्रकाशन, १९७२, पृष्ठ- १0३</ref>
कबीर पंथ का अध्ययन करने वाले केदारनाथ द्विवेदी के अनुसार इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि पंथ की स्थापना कबीर ने स्वयं की। कबीर की मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने यह कार्य किया।
== इतिहास ==
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