"रघुवंशम्": अवतरणों में अंतर
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इस कथा के माध्यम से कवि कालिदास ने [[राजा]] के चरित्र, आदर्श तथा [[राजधर्म]] जैसे विषयों का बडा़
समालोचकों ने कालिदास का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रघुवंश' को माना है। आदि से अन्त तक इसमें निपुण कवि का विलक्षण कौशल व्यक्त होता है। [[दिलीप]] और [[सुदक्षिणा]] के तपोमय जीवन से प्रारम्भ इस काव्य में
रघुवंश महाकाव्य की शैली क्लिष्ट अथवा कृत्रिम नहीं, सरल और प्रसादगुणमयी है। अलंकारों का सुरुचिपूर्ण प्रयोग स्वाभाविक एवं सहज सुंदर है। चुने हुए कुछ शब्दों में वर्ण्य विषय की सुंदर झाँकी दिखाने के साथ कवि ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में इष्ट वस्तु के सौंदर्य की पराकाष्ठा दिखलाने की अद्भुत युक्ति का आश्रय लिया है। गंगा और यमुना के संगम की, उनके मिश्रित जल के प्रवाह की छटा का वर्णन करते समय एक के बाद एक उपमाओं की शृंखला उपस्थित करते हुए अन्त में कवि ने शिव के शरीर के साथ-साथ उसकी शोभा की उपमा दी है और इस प्रकार सौंदर्य को सीमा से निकालकर अनंत के हाथों सौंप दिया-
पंक्ति 55:
:''हे निर्दोष अंगोंवाली सीते, यमुना की तरंगों से मिले हुए गंगा के इस प्रवाह को जरा देखो तो सही, जो कहीं कृष्णा सर्पों से अलंकृत और कहीं भस्मांगराग से मंडित भगवान् शिव के शरीर के समान सुंदर प्रतीत हो रहा है''
कालिदास
रघुवंश काव्य के आरंभ में महाकवि ने रघुकुल के राजाओं का महत्त्व एवं उनकी योग्यता का वर्णन करने के बहाने प्राणिमात्र के लिए कितने ही प्रकार के रमणीय उपदेश दिये हैं। रघुवंश काव्य में कालिदास ने रघुवंशी राजाओं को निमित्त बनाकर उदारचरित पुरुषों का स्वभाव पाठकों के सम्मुख रखा है। रघुवंशी राजाओं का संक्षेप में वर्णन जानना हो तो रघुवंश के केवल एक श्लोक में उसकी परिणति इस प्रकार है-
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:(''सत्पात्र को दान देने के लिए धन इकट्ठा करनेवाले, सत्य के लिए मितभाषी, यश के लिए विजय चाहनेवाले, और संतान के लिए [[विवाह]] करनेवाले, बाल्यकाल में विद्याध्ययन करने वाले, यौवन में सांसारिक भोग भोगने वाले, बुढ़ापे में मुनियों के समान रहने वाले और अन्त में [[योग]] के द्वारा शरीर का त्याग करने वाले (राजाओं का वर्णन करता हूँ)'')
== रघुवंश की कथा ==
‘रघुवंश’ की कथा दिलीप और उनकी पत्नी [[सुदक्षिणा]] के ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में प्रवेश से प्रारम्भ होती है। राजा दिलीप धनवान, गुणवान, बुद्धिमान और बलवान है, साथ ही धर्मपरायण भी। वे हर प्रकार से सम्पन्न हैं परंतु कमी है तो संतान की। संतान प्राप्ति का आशीर्वाद पाने के लिए दिलीप को गोमाता [[नंदिनी]] की सेवा करने के लिए कहा जाता है। रोज की तरह नंदिनी जंगल में विचर रही है और दिलीप भी उसकी रखवाली के लिए साथ चलते हैं। इतने में एक सिंह नंदिनी को अपना भोजन बनाना चाहता है। दिलीप अपने आप को अर्पित कर सिंह से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें वह अपना आहार बनाये। सिंह प्रार्थना स्वीकार कर लेता है और उन्हें मारने के लिए झपटता है। इस छलांग के साथ ही सिंह ओझल हो जाता है। तब नन्दिनी बताती है कि उसी ने दिलीप की परीक्षा लेने के लिए यह मायाजाल रचा था। नंदिनी दिलीप की सेवा से प्रसन्न होकर पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देती है। राजा दिलीप और सुदक्षिणा नंदिनी का दूध ग्रहण करते हैं और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। इस गुणवान पुत्र का नाम रघु रखा जाता है जिसके पराक्रम के कारण ही इस वंश को रघुवंश के नाम से जाना जाता है।
रघु के पराक्रम का वर्णन कालिदास ने विस्तारपूर्वक अपने ग्रन्थ ‘रघुवंश’ में किया है। [[अश्वमेध यज्ञ]] के घोडे़ को चुराने पर उन्होंने [[इन्द्र]] से युद्ध किया और उसे छुडा़कर लाया था। उन्होंने विश्वजीत यज्ञ सम्पन्न करके अपना सारा धन दान कर दिया था। जब उनके पास कुछ भी धन नहीं रहा, तो एक दिन ऋषिपुत्र [[कौत्स]] ने आकर उनसे १४ करोड स्वर्ण मुद्राएं मांगी ताकि वे अपनी गुरु दक्षिणा दे सकें। रघु ने इस ब्राह्मण को संतुष्ट करने के लिए [[कुबेर]] पर चढा़ई करने का मन बनाया। यह सूचना पाकर कुबेर घबराया और खुद ही उनका खज़ाना भर दिया। रघु ने सारा खज़ाना ब्राह्मण के हवाले कर दिया;
रघु के पुत्र अज भी बडे़ पराक्रमी हुए। उन्होंने विदर्भ की राजकुमारी
कालिदास ने ‘रघुवंश’ के आठ सर्गों में दिलीप, रघु और अज की जीवनी पर प्रकाश डाला। बाद में उन्होंने दशरथ, राम, लव और कुश की कथा का वर्णन आठ सर्गों में किया। जब राम लंका से लौट रहे थे, तब पुष्प विमान में बैठी सीता को दण्डकारण्य तथा पंचवटी के उन स्थानों को दिखा रहे थे जहाँ उन्होंने सीता की खोज की थी। इसका बडा़ ही सुंदर एवं मार्मिक दृष्टांत कालिदास ने ‘रघुवंश’ के तेरहवें सर्ग में किया है। इस सर्ग से पता चलता है कि कालिदास की भौगोलिक जानकारी कितनी गहन थी।
अयोध्या की पूर्व ख्याति और वर्तमान स्थिति का वर्णन [[कुश]] के स्वप्न के माध्यम से कवि ने बडी़ कुशलता से सोलहवें सर्ग में किया है। अन्तिम सर्ग में रघुवंश के अन्तिम राजा अग्निवर्ण के भोग-विलास का चित्रण किया गया है। राजा के दम्भ की पराकाष्ठा यह है कि जनता जब राजा के दर्शन के लिए आती है तो अग्निवर्ण अपने पैर खिड़की के बाहर पसार देता है। जनता के अनादर का परिणाम राज्य का पतन होता है और इस प्रकार एक प्रतापी वंश की इति भी हो जाती है।
== रामायण और रघुवंश ==
कालिदास जानते थे कि राम की कथा का उत्कर्ष [[वाल्मीकि रामायण|वाल्मिकि
== रघुवंश में प्रयुक्त छन्द ==
इस महाकाव्य में २१ प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है:
:[[अनुष्टुप]], इन्द्रवज्रा, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा, औपच्छन्दसिक, तोटक, द्रुतविलम्बित, पुष्पिताग्रा, प्रहर्षिणी, मंजुभाषिणी, मत्तमयूर, मन्दाक्रान्ता, मालिनी, रथोद्धता, वांशस्थ, वसन्ततिलका, वैतालीय, शार्दूलविकृडित, शालिनी, स्वागता, हरिणी।
== रघुवंश की
1• [[मनु]]
2• [[इक्ष्वाकु]]
3• शशाद
4• ककुत्स्थ
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