"दलित साहित्य": अवतरणों में अंतर

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'''दलित साहित्य''' की अवधारणा को लेकर लंबी बहसें चलीं. यह सवाल '''दलित साहित्य''' में प्रमुखता से छाया रहा कि '''दलित साहित्य''' कौन लिख सकता है, यानी स्‍वानुभूति ही प्रामाणिक होगी या सहानुभूति को भी स्‍थान मिलेगा। प्रमुख दलित साहित्‍यकारों ने कहा चूंकि सवर्णों ने दलितों की पीडा को भोगा नहीं, इसलिए वे '''दलित साहित्य''' नहीं लिख सकते. हालांकि यह मत ज्‍यादा दिनों तक टिका नहीं, लेकिन आरंभ में बहस का मुद्दा बना रहा। यह प्रश्‍न [[मराठी]] की तुलना में [[हिंदी]] में अधिक उठा. अंत में इस बात पर राय बनती नजर आई कि '''दलित साहित्य''' अस्‍सी और नब्‍बे के दशक में उभरा एक साहित्यिक आंदोलन है जिसमें प्रमुखता से दलित समाज में पैदा हुए रचनाकारों ने हिस्‍सा लिया और इसे अलग धारा मनवाने के लिए संघर्ष किया।<ref>वीर भारत तलवार- दलित साहित्‍य की अवधारणा, चिंतन की परंपरा और दलित साहित्‍य, पृष्‍ठ-75</ref>
== साहित्य में दलित ==
हालांकि साहित्य में दलित वर्ग की उपस्थिति [[बौद्ध]] काल से मुखरित रही है किंतु एक लक्षित [[मानवाधिकार]] [[आंदोलन]] के रूप में दलित साहित्य मुख्यतः बीसवीं सदी की देन है।<ref>भारतीय दलित आंदोलन : एक संक्षिप्त इतिहास, लेखक : [[मोहनदास नैमिशराय]], बुक्स फॉर चेन्ज, आई॰एस॰बी॰एन॰ : ८१-८७८३०-५१-१</ref>[[रवीन्द्र प्रभात]] ने अपने उपन्यास [[ताकि बचा रहे लोकतन्त्र]] में दलितों की सामाजिक स्थिति की वृहद चर्चा की है<ref>ताकि बचा रहे लोकतन्त्र, लेखक - रवीन्द्र प्रभात, प्रकाशक-हिन्द युग्म, 1, जिया सराय, हौज खास, नई दिल्ली-110016, भारत, वर्ष- 2011, आई एस बी एन 8191038587, आई एस बी एन 9788191038583</ref> वहीं डॉ॰एन.सिंह ने अपनीं पुस्तक "दलित साहित्य के प्रतिमान " में हिन्दी दलित साहित्य के इतिहास कों बहुत ही विस्तार से लिखा है।<ref>दलित साहित्य के प्रतिमान : डॉ॰ एन० सिंह, प्रकाशक : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली -११०००२, संस्करण: २०१२</ref> sat sahib ji
 
== प्रमुख भारतीय भाषाओं में दलित साहित्य ==