"नामदेव": अवतरणों में अंतर
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|Literary works = [[अभंग]] भक्ति काव्य
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'''श्री नामदेव जी''' भारत के
'''संत शिरोमणि श्री नामदेवजी''' का जन्म "नरसी नामदेव जिला हिंगोली ", मराठवाड़ा, महाराष्ट्र (भारत) में "26 अक्टूबर, 1270 , कार्तिक शुक्ल एकादशी संवत् १३२७, रविवार" को सूर्योदय के समय हुआ था। महाराष्ट्र के सातारा जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसा "नरसी बामणी गाँव, जिला परभणी उनका पैतृक गांव है." संत शिरोमणि श्री नामदेव जी का जन्म "शिम्पी" (मराठी) , जिसे राजस्थान में "छीपा" भी कहते है, परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दामाशेठ और माता का नाम गोणाई (गोणा बाई) था। इनका परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था। नामदेवजी का विवाह कल्याण निवासी राजाई (राजा बाई) के साथ हुआ था और इनके चार पुत्र व पुत्रवधु यथा '''"नारायण - लाड़ाबाई", "विट्ठल - गोडाबाई", "महादेव - येसाबाई" , व "गोविन्द - साखराबाई" तथा एक पुत्री थी जिनका नाम लिम्बाबाई''' था। श्री नामदेव जी की बड़ी बहन का नाम '''आऊबाई''' था। उनके एक पौत्र का नाम '''मुकुन्द''' व उनकी दासी का नाम '''"संत जनाबाई"''' था, जो संत नामदेवजी के जन्म के पहले से ही दामाशेठ के घर पर ही रहती थी। संत शिरोमणि श्री नामदेवजी के नानाजी का नाम '''गोमाजी''' और नानीजी का नाम '''उमाबाई''' था।
'''संत नामदेवजी''' ने ''वारकरी धर्म की स्थापना इसलिये की , कि उस समय ब्राह्मणोने पुरे बहुजन समाज को जिन्हें शूद्र अतिशूद्र नीचली जाती के लोग जैसे मराठा, कुणबी, सुतार ऐसी ओबीसी जातियां मंदिर में जाने से रोका था इसलिये संतनामदेव जी ने पंढरपूर में अलग मंदिर बनवाया टाकी सभी नीचली जाती के लोग एक जगह इकठ्ठा हो उनमे कोई जाती का भेदभाव ना रहे क्यों की ब्राह्मणोने सभी जातियां एक दुसरेसें दूर रखी थी, उनमे रोटीका व्यवहार नाही होता था लेकिन नामदेवजीने "काले का कीर्तन" यह नियम बनाकर कीर्तन के आखिरमें सभी जाती के लोग एकदुसरे के साथ खाना खायेंगे.
सन्त नामदेवजी के समय में नाथ और महानुभाव पंथों का महाराष्ट्र में प्रचार था। नाथ पंथ "अलख निरंजन" की योगपरक साधना का समर्थक तथा बाह्याडंबरों का विरोधी था और महानुभाव पंथ वैदिक(brahmin ) कर्मकांड तथा बहुदेवोपासना का विरोधी होते हुए भी मूर्तिपूजा को सर्वथा निषिद्ध नहीं मानता था। इनके अतिरिक्त महाराष्ट्र में पंढरपुर के "विठोबा" की उपासना भी प्रचलित थी। संत नामदेवजी पंढ़रपुर में वारी प्रथा शुरू करवाने के जनक हैं। इनके द्वारा शुरू की गई प्रथा अंतर्गत आज भी सामान्य जनता प्रतिवर्ष आषाढ़ी और कार्तिकी एकादशी को उनके दर्शनों के लिए पंढरपुर की "वारी" (यात्रा) किया करती थी (यह प्रथा आज भी प्रचलित है), इस प्रकार की वारी (यात्रा) करनेवाले "वारकरी" कहलाते हैं। विट्ठलोपासना का यह "धर्म (पंथ नही) " "वारकरी"धर्म
== नामदेव जी का कालनिर्णय ==
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