"रक्तचापमापी": अवतरणों में अंतर

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== रक्तचाप मापन यंत्र ==
१८९६ ई. में प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ॰ रिगरोसी ने रुधिरदाबमापी (sphygmomanometer) यंत्र का आविष्कार किया था। इस यंत्र में एक पंप होता है, जिससे रबर की एक नलिका लगी रहती है। यह नलिका आगे चलकर दो भागों में विभक्त हो जाती है, जिससे एक भाग का संबंध पारदयंत्र से रहता है। बाहुबंधक समरूप से बाहु पर कस कर बाँध दिया जाता है और पंप से हवा भरी जाती है। उसी समय केहुनीकोहनी के सामने के भाग में स्टेथस्कोपस्टेथोस्कोप रखकर प्रत्येक स्पंदन के समय की ध्वनि सुनी जाती है। जब बाहुबंधक में वायु का दबाव धमनीगत रक्तचाप से अधिक हो जाता है, तब धमनी दब जाती है और ध्वनि सुनाई नहीं देती, इसके फलस्वरूप पारदयंत्र में भी कंपन नहीं दीखता।दिखता। अब पंप के पेंच को ढीला करके बाहुबंधक से वायु धीरे धीरे निकाली जाती है। इस समय जैसे ही स्टेथस्कोप से ध्वनि सुनाई दे पारदयंत्र पर लगे पैमाने पर पारे का पाठ्यांक देखा जाता है। यही पाठ्यांक प्रकुंचन रक्तचाप होता है। अधिक वायु निकालने से ध्वनि तीव्रतर होती जाती है, फिर अस्पष्ट हो जाती है तथा अंत में बंद हो जाती है। ध्वनि के एकदम बंद होने के पूर्व अस्पष्ट ध्वनि के समय पारदयंत्र के पाठ्यांक को देख लिया जाता है। यही पाठ्यांक अनुशिथिलन रक्तचाप होता है।
 
मलबंध, भावावेश, शारीरिक और मानसिक परिश्रम की अधिकता, रक्तवाहिनियों में रक्त की कमी, हृदय की शक्ति तथा रक्त वाहनियों के परिधीय (peripheral) प्रतिरोध में कमी, रक्त की सांद्रता, रक्तवाहिनियों की प्रत्यास्थता, रक्तवाहिनियों का आयतन, श्वास संबंधी परिणाम तथा शीत एव उष्णता की कमी बेशी से रक्तचाप में परिवर्तन होता है।