"व्याकरण": अवतरणों में अंतर
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वेद जैसे महत्वपूर्ण साहित्य के व्याकरण की जरूरत पड़ी। व्याकरण के सहारे सुदूर देश प्रदेशों के ज्ञानपिपासु कहीं अन्यत्र उद्भुत साहित्य को समझ सकते हैं और अनंत काल बीत जाने पर भी लोग उसे समझने में सक्षम रहते हैं। वेद जैसा साहित्य देशकाल की सीमा में बँधा रहनेवाला नहीं है; इसलिए प्रबुद्ध "देव" जनों ने अपने राजा (इंद्र) से प्रार्थना की-"हमारी (वेद-) भाषा का व्याकरण बनना चाहिए। आप हमारी [[भाषा]] का व्याकरण बना दें।" तब तक वेदभाषा "अव्याकृता" थी; उसे यों ही लोग काम में ला रहे थे। इंद्र ने "वरम्" कहकर देवों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और फिर पदों को ("मध्यस्तोऽवक्रम्य") बीच से तोड़ तोड़कर प्रकृति प्रत्यय आदि का भेद किया-व्याकरण बन गया।
'''इस प्रकार
== व्याकरण भाषा का विश्लेषक है, नियामक नहीं ==
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