"मऊ, उत्तर प्रदेश": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
मऊ का बहुत गर्वशाली इतिहास रहा है। पांडवो के वनवास के समय वो मऊ जिले में भी आये थे,आज वो स्थान खुरहत के नाम से जाना जाता है। तथा उत्तरी सीमा पर बसे छोटा सा शहर दोहरीघाट जहा पर राम और परशुराम जी मीले थे। तथा दोहरीघाट से दस किलोमीटर पूर्व सूरजपुर नामक गाँव है,जहां पर श्रवण की समाधिस्थल है,जहाँ दशरथ ने श्रवण को मारा था। सामान्यत: यह माना जाता है कि 'मऊ' शब्द तुर्किश शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ गढ़, पांडव और छावनी होता है। वस्तुत: इस जगह के इतिहास के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। माना जाता है प्रसिद्ध शासक [[शेर शाह सूरी]] के शासनकाल में इस क्षेत्र में कई आर्थिक विकास करवाए गए। वहीं मिलिटरी बेस और शाही मस्जिद के निर्माण में काफी संख्या में श्रमिक और कारीगर मुगल सैनिकों के साथ यहां आए थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय में भी मऊ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 3 अक्टूबर 1939 ई. को [[महात्मा गांधी]] इस जगह पर आए थे। मऊ जिला का पुराना नाम मऊ नट भंजन बतया गया है। यह सत्य परे है मनगढंन्त है। यह एक जुलाहों का कस्बा था। इसकी तहसील मुहम्दाबाद रही है। यह केवल भ्रम फैलाया गया है। नटराज को भजने वाले माना जा सकता है। सूचना विभाग द्वारा जबकि मऊ में बोली जाने वाली भाषा फारसी, अरबी,अंग्रेजी तथा सर्वाधिक हिन्दी है और आज भी है। नटों की भाषा खिचड़ी बोली जती है। भरों की कोट आजमगढ़ एवं मऊ में है। नटों कोट कहाँ है सूचना विभाग बताए केवल भ्रम न फैलाए।
 
== पर्यटन ==