"दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा": अवतरणों में अंतर

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==उच्च शिक्षा और शोध संस्थान (विश्वविद्यालय शाखा)==
सन् 1964 ई. में संसद में पारित अधिनियम सं. 14 के अनुसार सभा को हिन्दी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाने और डिग्रियाँ प्रदान करने का अधिकार मिल गया है। उसी के अन्तर्गत सभा ने उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के कार्य का शुभारम्भ किया। इस संस्थान द्वारा हिन्दी में स्नातकोत्तर स्तर पर साहित्य और प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। नियमित एम.ए. के वर्ग संचालित हो रहे हैं। एम.फिल., पीएच.डी., डी.लिट., के लिए शोध कार्य सम्पन्न हो रहा है और डिग्रियाँ प्रदान की जा रही हैं। संस्थान हिन्दी शिक्षक तैयार करने की दृष्टि से बी.एड., एवं शिक्षा स्नातक कालेज चला रहा है। अब बी.ए. (तीन वर्ष), एम.ए. (हिन्दी), स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, एम.फिल, और पीएच.डी. का [[दूरस्थ शिक्षा]] पाठ्यक्रम भी शुरू हुआ है।
 
==राष्ट्रीय हिन्दी अनुसन्धान ग्रन्थालय==
सभा ने अपनी शैक्षणिक, साहित्यिक तथा प्रचारात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक ग्रन्थालय शुरू किया, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए 40,000 ग्रंथों का आगार बन गया है। इसके अलावा जबसे सभा का उच्च शिक्षा और शोध संस्थान का प्रारम्भ हुआ और शोध कार्य भी होने लगा, तबसे एक विशाल हिन्दी ग्रन्थालय की आवश्यकता अनुभव की गयी। इसके लिए एक करोड़ रुपये की लागत से चेन्नई में "राष्ट्रीय हिन्दी अनुसंधान ग्रंथालय" भवन का निर्माण किया गया। इस ग्रंथालय का निरन्तर विकास हो रहा है। अब इसमें करीब एक लाख से अधिक पुस्तकें हैं। समर्पित हिन्दी सेवी, हिन्दी प्रचारकों, हिन्दी प्रेमियों और उत्साही छात्र-समुदाय के सहयोग एवं भारत सरकार के सीमित अनुदान की सहायता से महात्मा गांधी पदवीदान मण्डप का निर्माण सन् 1985-86 में सम्पन्न हुआ है।
 
==शिक्षा विभाग==
प्रचारक प्रशिक्षण विद्यालय इन केन्द्रों में चल रहे हैं - हैदराबाद, विशाखपट्टणम, तेनाली, गुन्तकल, अवनिगड्डा, विजयवाड़ा, काकिनाड़ा, जनगाँव, तिरुच्ची, ऊटी व चेन्नई।
 
==परीक्षाएँ==