"राणा सांगा": अवतरणों में अंतर

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[[श्रेणी:मेवाड़ के शासक]]
हिं० म० १२६ ( वि० सं० २५७७ = ई० स० १५२० ) में एक दिन एक भाट फिरता हुआ ईडर पहुंचा और निज़ामुल्मुल्क के सामने भरे दरबार में महाराणा सगा की प्रशंसा करते हुए उसने कहा कि महाराणा के समान इस समय भारत भर में काई राजा नहीं है । महाराणा ईडर के राजा राायमल के रक्षक हैं‌ श्रन भले ही थोड़े दिन ईडर में रह ‌‌‌लो , परन्तु अन्त में वह रायमल का ही मिलेगा यह सुनकर निज़ामुल्मुल्क ने बडे़ कोध से कहा देखे वह किस प्रकार रक्षा करता है ? में यह बैठा है ,
[[श्रेणी:मेवाड़ राजवंश]]
फिर दरवाज़े पर बेठे हुए कुत्ते की तरफ उंगली करके कहा कि अगर । नही आया तो वह इस कुत्ते जैसा ही होगा । भाट न उत्तर दिया कि संगा आयेगा और तुम्हे ईडर से निकाल देगा । उस भाट ने जाकर यह सारा हाल माहराणा से कहा । यह सुनते ही उसने गुजरात पर चढ़ाई करन का निश्चय किया और सिरोही के इलाके में होता हुआ वह वागड़ में जा पहुचा । वागड़ का राजा ( उदयसिंह ) भी महाराणा के साथ हो गया । महाराणा के ईडर के इलाक मे पहुंचन की ख़बर सुनने पर सुलतान ने और सेना भेजना चाहा , परन्तु उसके मत्रिया ने निज़ामुल्मुल्क की बदनामी कराने के लिए वह बात टाल दी । सुलतान , किवामुल्मुल्क पर नगर की रक्षा का भार सौंपकर मुहम्मदाबाद को पहुंचा , जहां निज़ामुल्मुल्क ने उसको का यह ख़बर पहुंचाई कि राणा के साथ ' ४०००० सवार हैं और ईडर में केवल ५००० , अतएप ई डर की रक्षा न की जा सकेगी । इस विषय में सुलतान ने अपने मंत्रियों की सलाह ली परन्तु वे इस बात को टालते ही रहे । इस समय तक राणा ईडर पर आ पहुुंचा और निज़ामुल्मुल्क, जिसको मुबारिजुल्मुल्क का खि़ताब मिला था,भागकर अहमदनगर के किले में जा रहा और सुलतान के आने की प्रतीक्षा करने लगा । महाराणा ने ईडर की गद्दी पर रायमले को बिठाकर अहमदनगर का जा घेरा । मुसलमानों ने किले के दरवाजे बन्द कर लड़ाई शुरू की । इस युद्ध में महाराणा की सेना का एक नामी सरदार डूंगरसिंह चौहान ( वागड़ का ) बुरी तरह घायल हुआ और उसके कई भाई बेटे मारे गए । डूंगरसिंह के पुत्र कान्हासिंंह ने बड़ी वीरता दिखाई । किले के लोहे के किवाड़ तोड़ने के लिये जब हाथी आगे बढ़ाया गया तब वह उसमे लगे हुए तीक्ष्ण भालों के कारण मुद्रा न कर सका । यह देखकर वीर कान्हसिंह ने भालों के आगे खड़े होकर महावत को कहा कि हाथी को मेरे बदन पर झोक दे । कान्हासिंह पर हाथी ने मुहरा किया , जिससे उसका बदन भालों से छिन छिन हो गया और वह तत्क्षण मर गया , परन्तु किवाड़ भी टूट गए । इस घटना से राजपूतों का उत्साह और भी बढ़ गया , वे नंगी तलवार लेकर किले में घुस गए और उन्हाने मुसलमानों सेना को काट डाला । मुबारिज़ल्मुल्क किले की पीछे की खिड़की से भाग गया । ज्यों ही वह किले से भाग रहा था , त्या ही वही भाट - - जिसने उसे भरे दरबार में कहा था कि सांगा आयगा और तु हैं ईडर से निकाल दगा – दिखाई दिया और उसने कहा कि तुम तो सदा महाराणा के आगे भागा करते हो । इमपर लज्जित होकर वह नदी के दूसरे किनारे पर महाराणा की सना से मुकाबला करने के लिए ठहरा ” । उसका पता लगते ही महाराणा उस पर टूट पड़ा , जिससे मुसलमानों में भगदर पड़ गई , बहुतसे मुसलमान सरदार मारे गए , मुबारिज़ल्मुल्क भी बहुत घायल हुआ और सुल तान की सारी सेना तितर - बितर होकर अहमदाबाद को भाग गई । मुसलमानों के असबाब के साथ कई हाथी भी महाराणा के हाथ लगे । महाराणा ने अहमदनगर को लूटकर बहुत से मुसलमानों का कैद किया , फिर वह बड़नगर को लूटने चला , परंतु वहां के ब्राह्मण ने उससे अभयदान की प्रार्थना की , जिसे स्वीकार कर वह वसलनगर की ओर बढ़ा । महाराणा ने लड़ाई में वहां के हाकिम हातिमखां को मारकर शहर को लूटा । इस प्रकार महाराणा ने अपने अपमान का बदला लिया , सुलतान के भयभीत किया , निज़ामुल्मुल्क का घमंड चूर्ण कर दिया और रायमल को ईडर का राज्य देकर चित्तोड़ को प्रस्थान किया ।
[[श्रेणी:भारत के शासक]]
[[श्रेणी:भारत का इतिहास]]