"संस्कृत व्याकरण": अवतरणों में अंतर
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[[संस्कृत]] में [[व्याकरण]] की परम्परा बहुत प्राचीन है। संस्कृत भाषा को शुद्ध रूप में जानने के लिए व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया जाता है। अपनी इस विशेषता के कारण ही यह [[वेद]] का सर्वप्रमुख अंग माना जाता है ('[[वेदांग]]'
: ''यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च।
: ''यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥
''- जिसके लिए "विहस्य" छठी विभक्ति का है और "विहाय" चौथी विभक्ति का है ; "अहम् और कथम्"(शब्द) द्वितीया विभक्ति हो सकता है। मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी (द्वितीया) कैसे हो सकती हूँ ?
: (ध्यान दें कि किसी पद के अन्त
== [[वचन (व्याकरण)|वचन]] ==
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