"रत्नसिंह": अवतरणों में अंतर
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== परिचय तथा इतिहास ==
[[बप्पा रावल]] के वंश में समर सिंह के दो पुत्रों में रत्नसिंह एक योग्य पराक्रमी शासक था, रत्न सिंह के भाई कुंभकर्ण पहले से ही मेवाड़ को छोड़कर [[नेपाल]] पलायन कर गए
चौदहवीं शताब्दी के बिल्कुल आरंभिक वर्षों में चित्तौर की राजगद्दी पर बैठे थे। इनकी विशेष ख्याति हिन्दी के महाकाव्य [[पद्मावत]] में '''राजा रतनसेन''' के नाम से रही है। कुछ इतिहासकार इनका सिंहासनारोहण 1301ई० में मानते हैं<ref>भारतीय इतिहास कोश, एस० एल० नागोरी एवं जीतेश नागोरी, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, जयपुर, संस्करण-2005, पृ०-263.</ref> तो कुछ 1302 ई० में।<ref>राजस्थान : इतिहास एवं संस्कृति एन्साइक्लपीडिया, डॉ० हुकमचंद जैन एवं नारायण माली, जैन प्रकाशन मंदिर, जयपुर, संस्करण-2010, पृ०-413.</ref> इनकी पत्नी इतिहास-प्रसिद्ध रानी [[पद्मिनी]] या पद्मावती थी। 1303 ई० में [[अलाउद्दीन खिलजी]] के आक्रमण से परिवार तथा शासन सहित ये भी नष्ट हो गये। प्रायः 1 वर्ष का ही शासन काल होने तथा इनके साथ ही इनके वंश का अंत हो जाने से पश्चात्कालीन भाटों-चारणों की गाथाओं में इनका नाम ही लुप्त हो गया था। यहाँ तक कि इन्हीं स्रोतों पर मुख्यतः आधारित होने के कारण [[जेम्स टॉड|कर्नल टॉड]] के सुप्रसिद्ध राजस्थान के इतिहास संबंधी ग्रंथ में भी इनका नाम तक नहीं दिया गया है। उनके स्थान पर अत्यंत भ्रामक रूप से भीमसिंह से इनकी पत्नी रानी पद्मिनी का संबंध जोड़ा गया है।<ref>राजस्थान का इतिहास, भाग-1, अनुवादक-केशव ठाकुर, साहित्यागार, जयपुर, संस्करण-2008, पृष्ठ-132.</ref>
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