"विश्वज्ञानकोश": अवतरणों में अंतर

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भारतीय वाङमय में संदर्भग्रंथों- [[शब्दकोश|कोश]], अनुक्रमणिका, निबंध, ज्ञानसंकलन आदि की परंपरा बहुत पुरानी है। भारतीय वाङ्मय में संदर्भ ग्रंथों का कभी अभाव नहीं रहा। भारत में पारम्परिक विद्वत्ता के दायरे में [[महाभारत]] को सबसे प्राचीन ज्ञानकोश माना गया है। कई विद्वान [[पुराण|पुराणों]] को भी ज्ञानकोश की श्रेणी में रखते हैं। [[राम अवतार शर्मा]] जैसे दार्शनिक ने तो [[अग्निपुराण]] को स्पष्ट रूप से ज्ञानकोश माना है। इसमें इतने अधिक विषयों का समावेश है कि इसे 'भारतीय संस्कृति का विश्वकोश' कहा जाता है।
 
इन आग्रहों की उपेक्षा न करते हुए भी यह मानना होगा कि पश्चिमी अर्थों में ज्ञानकोश रचने की परम्परा भारत में अपेक्षाकृत नयी है। इससे पहले [[संस्कृत साहित्य]] में कठिन वैदिक शब्दों के संकलन [[निघण्टु]] और ईसा पूर्व सातवीं सदी में [[यास्क]] और अन्य विद्वानों द्वारा रचित उसके भाष्य निरुक्त की परम्परा मिलती है। इस परम्परा के तहत विभिन्न विषयों के निघण्टु तैयार किये गये जिनमें [[धन्वंतरि]] रचित [[आयुर्वेद]] का निघण्टु भी शामिल था। इसके बाद संस्कृत और हिंदी में [[नाममाला]] कोशों का उद्भव और विकास दिखायी देता है। निघण्टु और निरुक्त के अलावा [[श्रीधर सेन]] कृत [[कोश कल्पतरु]], राजा [[राधाकांत देव]] बहादुर की 1822 की कृति [[शब्दकल्पद्रुम]], 1873 से 1883 के बीच प्रकाशित [[तारानाथ भट्टाचार्य]] वाचस्पति कृत [[वाचस्पत्यम]] जैसी रचनाओं को संभवतः ज्ञानकोश की कोटि में रखा जा सकता है। पाँचवीं-छठी से लेकर अट्ठारहवीं सदी तक की अवधि में रचे गये अनगिनत नाममाला कोशों में [[अमरसिंह]] द्वारा रचित [[अमरकोश]] का शीर्ष स्थान है। कोश रचना के इस [https://newsup2date.com/eminent-personality/eminent-personality-kalyan-dev-ji-maharaj-age-129-years-swami-kalyan-dev-ji-national-awards-padma-shri-awards-and-national-achievement-muzzafaragr/ पारम्परिक भारतीय] उद्यम के केंद्र में शब्द और शब्द-रचना थी। शब्दों के तात्पर्य, उनके विभिन्न रूप, उनके [[पर्यायवाची]], उनके मूल और विकास-प्रक्रिया पर प्रकाश डालने वाले ये कोश ज्ञान-रचना में तो सहायक थे, पर इन्हें ज्ञानकोश की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता था।
 
बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में आधुनिक अर्थों में ज्ञानकोश रचने का काम शुरू हुआ। [[काशी]] की [[नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा बनवाया गया [[हिंदी ज्ञानकोश]] इस सिलिसिले में उल्लेखनीय है। [[बांग्ला]] में साहित्य वारिधि और शब्द रत्नाकर की उपाधियों से विभूषित [[नगेन्द्र नाथ बसु]] ने एक विशाल ज्ञानकोश तैयार किया। उसी तर्ज़ पर [[कलकत्ता]] से ही बसु के अनुभव का लाभ उठाते हुए उन्हें हिंदी में एक विशद ज्ञान-कोश तैयार करने की जि़म्मेदारी सौंपी गयी। पच्चीस खण्डों का यह ज्ञान-कोश 1917 में छपा। ख़ुद [[महात्मा गाँधी]] ने इसे उपयोगी बताते हुए अपनी संस्तुति में लिखा कि यह भारत की ‘लिंगुआ-फ्रैंका’ हिंदी के विकास में सहायक होगा। बसु ने भी इसी पहलू पर ज़ोर देते हुए पहले खण्ड में छपी अपनी छोटी सी भूमिका में उम्मीद जतायी कि जिस भाषा को '[[राष्ट्रभाषा]]' बनाने का यत्न चल रहा है, वह आगे जाकर राष्ट्रभाषा बन ही जाएगी। साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि हिंदी का ज्ञान-कोश बांग्ला का अनुवाद नहीं है, बल्कि मूलतः हिंदी में ही लिखा गया है। इन कोशों के अलावा [[हरदेव बाहरी]] रचित प्रसाद साहित्य कोश, [[प्रेमनारायण टण्डन]] कृत 'हिंदी सेवीसंसार' और [[ज्ञानमंडल]] द्वारा प्रकाशित साहित्यकोश उल्लेखनीय है।