"रामधारी सिंह 'दिनकर'": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
दिनकर का जन्म [[२३ सितंबर]] [[१९०८]] को [[बिहार]] के [[बेगूसराय जिला|बेगूसराय जिले]] के सिमरिया गाँव में हुआ था। उन्होंने [[पटना विश्वविद्यालय]] से [[इतिहास]], [[दर्शनशास्त्र]] और [[राजनीति विज्ञान]] में बीए किया।वो मिंटो छात्रवास में रहते थे।किया। उन्होंने [[संस्कृत]], [[बांग्ला]], [[अंग्रेजी]] और [[उर्दू]] का गहन अध्ययन किया था। बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गये। [[१९३४]] से [[१९४७]] तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर कार्य किया। [[१९५०]] से [[१९५२]] तक मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, [[भागलपुर विश्वविद्यालय]] के उपकुलपति के पद पर कार्य किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।
 
उन्हें [[पद्म विभूषण]] की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक ''संस्कृति के चार अध्याय ''<ref>[http://www.sahitya-akademi.org/sahitya-akademi/awa10306.htm#hindi Sahitya Akademi Awards 1955-2007] [[साहित्य अकादमी पुरस्कार|साहित्य अकादमी पुरस्कारों]] का आधिकारिक जाल स्थल</ref> के लिये [[साहित्य अकादमी]] पुरस्कार तथा ''उर्वशी'' के लिये [[भारतीय ज्ञानपीठ]] पुरस्कार प्रदान किया गया। अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे।
 
[[द्वापर]] युग की ऐतिहासिक घटना [[महाभारत]] पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य [[कुरुक्षेत्र]] को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।<ref>{{cite web|url=http://kumarparal.hubpages.com/hub/TOP-100-FAMOUS-EPICS-OF-THE-WORLD |title=Top 100 famous epics of the World |trans-title=विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ प्रबन्ध काव्य| language = en|accessdate=9 दिसम्बर 2013}}Spaieagle</ref>
 
== प्रमुख कृतियाँ ==
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61. आधुनिक बोध 1973
 
62. भारत एक है
 
[[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]] ने कहा था "दिनकरजी अहिंदीभाषियों के बीच हिन्दी के सभी कवियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे और अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के प्रतीक थे।" [[हरिवंश राय बच्चन]] ने कहा था "दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये।" [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] ने कहा था "दिनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन को स्वर दिया।" [[नामवर सिंह]] ने कहा है "दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे।"