"सूफ़ीवाद": अवतरणों में अंतर

छोNo edit summary
छोNo edit summary
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=जून 2015}}
{{इस्लाम}}
'''सूफ़ीवाद''' या '''तसव्वुफ़'''<ref name="qamar">{{citation|url=https://books.google.com/?id=t1ORAgAAQBAJ|title=Striving for Divine Union: Spiritual Exercises for Suhraward Sufis|author=Qamar-ul Huda|pages=1–4|publisher=RoutledgeCurzon|year=2003|isbn=9781135788438}}</ref> [[इस्लाम]] का एक रहस्यवादी पंथ है।<ref name="Martin Lings 1983, p.15">Martin Lings, ''What is Sufism?'' (Lahore: Suhail Academy, 2005; first imp. 1983, second imp. 1999), p.15</ref> इसके पंथियों को ''सूफ़ी''([[सूफ़ी संत]]) कहते हैं। इनका लक्ष्य अपने पंथ की प्रगति एवं सूफीवाद की सेवा रहा है। सूफ़ी राजाओं से दान-उपहार स्वीकार करते थे और रंगीला जीवन बिताना पसन्द करते थे। इनके कई तरीक़े या घराने हैं जिनमें [[सोहरावर्दी]] (सुहरवर्दी), [[नक्शवंदिया]], [[कादिरी]], [[चिष्तिया]], [[कलंदरिया]] और [[शुस्तरिया]] के नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
 
माना जाता है कि सूफ़ीवाद [[ईराक़]] के [[बसरा]] नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा। राबिया, अल अदहम, मंसूर हल्लाज जैसे शख़्सियतों को इनका प्रणेता कहा जाता है - ये अपने समकालीनों के आदर्श थे लेकिन इनको अपने जीवनकाल में आम जनता की अवहेलना और तिरस्कार झेलनी पड़ी। सूफ़ियों को पहचान [[अल ग़ज़ाली]] के समय (सन् ११००) से ही मिली। बाद में [[अत्तार]], [[रूमी]] और [[हाफ़िज़]] जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ का माध्यम बनाया। भारत में इसके पहुंचने की सही-सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ख़्वाजा [[मोईनुद्दीन चिश्ती]] बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में जुट गए थे।