"मेघनाद": अवतरणों में अंतर

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क्रोधित इंद्रजीत ने जब देखा विभीषण जी वानर सेना को लेकर के आए हैं तो क्रोध में आकर उसने विभीषण जी पर यम-अस्त्र का प्रयोग किया । परंतु यक्षराज कुबेर ने पहले ही लक्ष्मण जी को उसकी काट बता दी थी । लक्ष्मण जी ने उसी का प्रयोग करके यम-अस्त्र को निस्तेज कर दिया । इस पर इंद्रजीत को बहुत क्रोध आया और उसने एक बहुत ही भयानक युद्ध लक्ष्मण जी से आरंभ कर दिया, परंतु उसमें भी जब लक्ष्मण जी इंद्रजीत पर भारी हो गए तो उसने अंतिम तीन महा अस्त्रों का प्रयोग किया जिन से बढ़कर कोई दूसरा अस्त्र इस सृष्टि में नहीं है ।
 
सबसे पहले उसने ब्रह्मांड अस्त्र का प्रयोग किया । इस पर भगवान ब्रह्मा जी ने उसे सावधान किया की यह नीति विरुद्ध है, परंतु उसने ब्रह्मा जी की बात ना मानकर उसका प्रयोग लक्ष्मण जी पर किया । परिणाम स्वरूप ब्रह्मांड अस्त्र लक्ष्मण जी को प्रणाम करके निस्तेज होकर लौट आया । फिर उसने लक्ष्मण जी पर भगवान शिव का पाशुपतास्त्र प्रयोग किया परंतु वह भी लक्ष्मण जी को प्रणाम करके लुप्त हो गया । फिर उसने भगवान विष्णु का वैष्णव अस्त्र लक्ष्मण जी पर प्रयोग किया परंतु वह भी उनकी परिक्रमा करके लौट आया ।

[[चित्र:Killing इसof परIndrajit Painting by Balasaheb Pant Pratinidhi.jpg|thumb|इंद्रजीत का वध]]
अब इंद्रजीत समझ गया लक्ष्मण जी एक साधारण नर नहीं स्वयं भगवान का अवतार है और वह तुरंत ही अपने पिता के पास पहुंचा और उसने सारी कथा का व्याख्यान दिया । परंतु रावण तब भी नहीं माना और उसने फिर से इंद्रजीत का युद्ध भूमि में भेज दिया । इंद्रजीत ने यह निश्चय किया यदि पराजय ही होनी है भगवान के हाथों वीरगति को प्राप्त होना तो सौभाग्य की बात है । और उसने फिर एक बार फिर एक महासंग्राम आरंभ किया । बड़ा भयंकर युद्ध हुआ । अंत में लक्ष्मण जी ने भगवान श्री राम का नाम लेकर एक ऐसा बाण छोड़ा जिससे इंद्रजीत के हाथ और शीश कट गए और उसका शीश कटकर भगवान श्री राम के चरणों में पहुंच गया ।