"बौद्ध धर्म": अवतरणों में अंतर
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प्रतीत्यसमुत्पाद का सिद्धांत कहता है कि कोई भी घटना केवल दूसरी घटनाओं के कारण ही एक जटिल कारण-परिणाम के जाल में विद्यमान होती है। प्राणियों के लिये, इसका अर्थ है कर्म और विपाक (कर्म के परिणाम) के अनुसार अनंत संसार का चक्र। क्योंकि सब कुछ अनित्य और अनात्मं (बिना आत्मा के) होता है, कुछ भी सच में विद्यमान नहीं है। हर घटना मूलतः शुन्य होती है। परंतु, मानव, जिनके पास ज्ञान की शक्ति है, तृष्णा को, जो दुःख का कारण है, त्यागकर, तृष्णा में नष्ट की हुई शक्ति को ज्ञान और ध्यान में बदलकर, निर्वाण पा सकते हैं।
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{{मुख्य|क्षणिकवाद}}▼
इस दुनिया में सब कुछ क्षणिक है और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। परन्तु वैदिक मत से विरोध है।
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▲{{मुख्य|क्षणिकवाद}}
आत्मा का अर्थ 'मै' होता है। किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही है। क्षण-क्षण बदलाव होता है। इसलिए, 'मै'अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज़ नहीं। जिसे लोग [[आत्मा]] समझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। आत्मा का स्थान मन ने लिया है।
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