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* [[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
कौटिल्य का राज्य-सिद्धांत भारतीय राजनीतिक चिन्तन हेतु महत्त्वपूर्ण देन है। उसने राजनीतिक शास्त्र को धार्मिकता की ओर अधिक झुके होने की प्रवृत्ति से मुक्त किया। यद्यपि वह धर्म व नैतिकता का विरोध नहीं करता, किन्तु उसने राजनीति को साधारण नैतिकता के बन्धनों से मुक्त रखा है। इस दृष्टि से उसके विचार यूरोपीय दार्शनिक मैक्यावली के विचारों का पूर्व संकेत प्रतीत होते हैं। इस आधार पर उसे ‘‘भारत का मैकयावली’’ भी कहा जाता है। सेलीटोर का मत है कि कौटिल्य की तुलना अरस्तु से करना उचित होगा, क्योंकि दोनों ही सत्ता हस्तगत करने के स्थान पर राज्य के उद्देश्यों को अधिक महत्त्व देते हैं। यथार्थवादी होने के नाते कौटिल्य ने राज्य के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। कौटिल्य का राज्य यद्यपि सर्वाधिकारी है, किन्तु वह जनहित के प्रति उदासीन नहीं है।
+ VINAY GOUTAM
कौटिल्य का राज्य-सिद्धांत भारतीय राजनीतिक चिन्तन हेतु महत्त्वपूर्ण देन है। उसने राजनीतिक शास्त्र को धार्मिकता की ओर अधिक झुके होने की प्रवृत्ति से मुक्त किया। यद्यपि वह धर्म व नैतिकता का विरोध नहीं करता, किन्तु उसने राजनीति को साधारण नैतिकता के बन्धनों से मुक्त रखा है। इस दृष्टि से उसके विचार यूरोपीय दार्शनिक मैक्यावली के विचारों का पूर्व संकेत प्रतीत होते हैं। इस आधार पर उसे ‘‘भारत का मैकयावली’’ भी कहा जाता है। सेलीटोर का मत है कि कौटिल्य की तुलना अरस्तु से करना उचित होगा, क्योंकि दोनों ही सत्ता हस्तगत करने के स्थान पर राज्य के उद्देश्यों को अधिक महत्त्व देते हैं। यथार्थवादी होने के नाते कौटिल्य ने राज्य के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है। कौटिल्य का राज्य यद्यपि सर्वाधिकारी है, किन्तु वह जनहित के प्रति उदासीन नहीं है।
 
== सन्दर्भ ==