"बिहारी (साहित्यकार)": अवतरणों में अंतर

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== जीवन परिचय ==
[[बिहारीलाल]] का जन्म संवत् 1595 ई. [ग्वालियर]] में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे (चतुर्वेदी) थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। जब बिहारी 8 वर्ष के थे तब इनके पिता इन्हे [[ओरछा]] ले आये तथा उनका बचपन [[बुंदेलखंड]] में बीता। इनके गुरु [[नरहरिदास]] थे और युवावस्था ससुराल [[मथुरा]] में व्यतीत हुई, जैसे की निम्न दोहे से प्रकट है -
 
: ''जन्म ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।
: ''तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल॥
 
[[जयपुर]]-नरेश सवाई राजा जयसिंह अपनी नयी रानी के प्रेम में इतने डूबे रहते थे कि वे महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राज-काज की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। मंत्री आदि लोग इससे बड़े चिंतित थे, किंतु राजा से कुछ कहने को शक्ति किसी में न थी। बिहारी ने यह कार्य अपने ऊपर लिया। उन्होंने निम्नलिखित दोहा किसी प्रकार राजा के पास पहुंचाया -
 
: ''नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
: ''अली कली ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल॥<ref>{{cite book |last1=श्री जगन्नाथदास |first1='रत्नाकर' |title=बिहारी रत्नाकर |date=२०१३ |publisher=लोकभारती |location=इलाहाबाद |isbn=978-81-8031-281-6 |page=४२}}</ref>
 
इस दोहे ने राजा पर मंत्र जैसा कार्य किया। वे रानी के प्रेम-पाश से मुक्त होकर पुनः अपना राज-काज संभालने लगे। वे बिहारी की काव्य कुशलता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने [[बिहारी]] से और भी दोहे रचने के लिए कहा और प्रति दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा देने का वचन दिया। [[बिहारी]] [[जयपुर नरेश]] के दरबार में रहकर काव्य-रचना करने लगे, वहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला।
 
== कृतियाँ ==