"आसक्ति": अवतरणों में अंतर

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'''आसक्ति''' का अर्थ है किसी वस्तु के प्रति विशेष रुचि होना।
जो आ तो सकती है आने के जिसके सारे द्वार खुले हो लेकिन जाने का कोई रास्ता ही न हो । वही आसक्ति है।
जिसका एक मात्र योग ही साधन है जिस योग को श्रीमद्भगवद्गीता मे भगवान श्री कृष्ण जी ने वार वार उल्लेख किया है ।
लेकिन तरीका सिर्फ तत्वज्ञानी महात्मा ही बता सकते है ऐसा इशारा भगवानश्री कृष्ण जी ने श्रीमदभगवदगीता मे किया है।
अब तत्वज्ञानी महात्मा को पाना ही कोई आसान काम नहीं हैं ।
शंकर जी और हनुमान जैसे गुरू मिल जाये ये बिना श्रद्धा के सम्भव नहीं है।
आचार्य तुलसीदास जी जैसे आसक्ति में फंसे जंजाल से निकल कर तुलसीदास जी ने हमारे जैसों को प्रेरित किया है।
अपि चेदसि पापेभ्य:सर्वेभ्यः पापक्रत्तमः।
सर्वं ग्यानप्लवेनैव व्रजिनं सन्तरिष्यसि ।।
यदि तू सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है; तो भी तू ग्यानरूप नौकाद्वारा नि:सन्देह सम्पूर्ण पाप समुद्र से भलीभांति तर जायेगा ।
 
== उदाहरण ==