"चन्द्रशेखर आज़ाद": अवतरणों में अंतर

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== जन्म तथा प्रारम्भिक जीवन ==
[[Image:Azad Birth Place.jpg|thumb|300px|अपने पैतृक गाँव में चन्द्रशेखर आजाद की मूर्ति]]
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान [[अलीराजपुर जिला]]) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था।<ref name="CalcuttaEnglish1958">{{cite book | publisher = University of Calcutta. Dept. of English | title=The Calcutta review | url=http://books.google.com/books?id=4BAxAQAAMAAJ | accessdate=11 सितंबर 2012 | year=1958 | publisher=University of Calcutta | page=44}}</ref><ref name="CatherineAsher1994">{{cite book | editor=Catherine B. Asher | title=India 2001: reference encyclopedia | url=http://books.google.com/books?id=F_BtAAAAMAAJ | accessdate=11 सितंबर 2012 | date=June 1994 | publisher=South Asia Publications | isbn=978-0-945921-42-4 | page = 131 }}</ref> उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान [[उन्नाव जिला]]) बैसवारा से थे। आजाद के [[पिता]] पण्डित सीताराम जोगीतिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों [[मध्य प्रदेश]] अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा [[गाँव]] में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी [[माँ]] का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा [[गाँव]] में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय [[बनारस]] क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथमन्मथनाथ नाथगुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के नाम से जाना जाता था।
 
== पहली घटना ==
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== क्रान्तिकारी संगठन ==
[[असहयोग आन्दोलन]] के दौरान जब फरवरी १९२२ में [[चौरी चौरा]] की घटना के पश्चात् बिना किसे से पूछे [[गाँधीजी]] ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी [[कांग्रेस]] से मोह भंग हो गया और पण्डित [[राम प्रसाद बिस्मिल]], शचीन्द्र नाथ (नाथ पंथी )शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने १९२४ में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल ''हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ'' (एच० आर० ए०) का गठन किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये। इस संगठन ने जब गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके तो यह तय किया गया कि किसी भी औरत के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस पर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों पर, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल भी शामिल थे, पूरे गाँव ने हमला कर दिया। बिस्मिल ने मकान के अन्दर घुसकर उस औरत के कसकर चाँटा मारा, पिस्तौल वापस छीनी और आजाद को डाँटते हुए खींचकर बाहर लाये। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। १ जनवरी १९२५ को दल ने समूचे [[हिन्दुस्तान]] में अपना बहुचर्चित पर्चा ''द रिवोल्यूशनरी'' (क्रान्तिकारी) बाँटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा किया गया था। इस पैम्फलेट में सशस्त्र क्रान्ति की चर्चा की गयी थी। इश्तहार के लेखक के रूप में "विजयसिंह" का छद्म नाम दिया गया था। [[शचींद्र नाथशचींद्रनाथ सान्याल]] इस पर्चे को [[बंगाल]] में पोस्ट करने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बाँकुरा में गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। "एच० आर० ए०" के गठन के अवसर से ही इन तीनों प्रमुख नेताओं - बिस्मिल, नाथसान्याल और चटर्जी में इस संगठन के उद्देश्यों को लेकर मतभेद था।
 
इस संघ की नीतियों के अनुसार ९ अगस्त १९२५ को [[काकोरी काण्ड]] को अंजाम दिया गया। जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य [[अशफाक उल्ला खाँ]] ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओँ - पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर[[रोशन सिंह]] को १९ दिसम्बर १९२७ तथा उससे २ दिन पूर्व [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] को १७ दिसम्बर १९२७ को [[फाँसी]] पर लटकाकर मार दिया गया। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल पाय: निष्क्रिय ही रहा। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रान्तिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा [[भगत सिंह]] भी शामिल थे लेकिन किसी कारण वश यह योजना पूरी न हो सकी।